भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन : तृतीय चरण (वर्ष 1935-1947)General Knowledge by Gyan Raja - February 9, 2022February 14, 20220भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन : तृतीय चरण (वर्ष 1935-1947) 1937 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के स्थगन के पश्चात् कांग्रेस के अन्दर राष्ट्रीय आन्दोलन की आगामी रणनीति पर विमर्श हो रहा था कि ब्रिटिश सरकार ने 1935 का अधिनियम पारित कर दिया। इस अधिनियम से राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व असन्तुष्ट ही रहा। इस अधिनियम के तहत वर्ष हुए प्रान्तीय विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने अनेक प्रान्तों में अपने मन्त्रिमण्डल गठित किए, किन्तु वर्ष 1939 में बिना भारतीयों की सहमति से ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी द्वितीय विश्वयुद्ध घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों ने त्यागपत्र दे दिए, जिसके साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन के निर्णायक चरण की शुरुआत हो गई। 1935 का अधिनियम (एक्ट) मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार शीघ्र ही जनता के असन्तोष का कारण बन गया, जिसके कारण देश में संवैधानिक सुधारों के लिए प्रदर्शन हुए। प्रान्तों में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन पर बल दिया गया। गोलमेज सम्मेलन के समाप्त होने पर राज्य
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन प्रथम चरण (1885 से 1915 ई.)General Knowledge by Gyan Raja - February 8, 2022February 13, 20220भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन प्रथम चरण (1885 से 1915 ई.) भारत की स्वतन्त्रता हेतु लक्षित भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन आधुनिक विश्व के सबसे बड़े व सफल आन्दोलनों में से एक है। यह आन्दोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध भारतीय जनमानस की प्रतिक्रियात्मक अभिव्यक्ति था। इस आन्दोलन में देश के करोड़ों लोगों ने अपनी विभिन्न विचारधाराओं के साथ भाग लिया तथा इसको आगे बढ़ाने में योगदान दिया। आरम्भ में सीमित परिमाण में प्रारम्भ यह आन्दोलन धीरे-धीरे राष्ट्रमुक्ति हेतु एक विराट जन आन्दोलन बन गया। यह इस आन्दोलन की ही शक्ति थी कि विश्व की सबसे अजेय मानी जाने वाली औपनिवेशिक शक्ति को घुटने टेकने हेतु बाध्य कर दिया।भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की शुरुआत कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, यह वर्षों से विकसित हो रहे राष्ट्रवादी विचारों की परिणति थी। इन राष्ट्रवादी विचारों के परिणामस्वरूप ही भारतीय भू-भाग एक राष्ट्र के रूप में संगठित हुआ, जिससे भारतीयों में एकता की भावना का