You are here
Home > General Knowledge > संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारत में संविधान का निर्माण की संकल्पना राष्ट्रीय आन्दोलन (National Movement) से जुड़ी हुई है। भारत के संविधान सभा के निश्चित उल्लेख भारत शासन अधिनियम, 1919 के लागू होने के बाद वर्ष 1922 में महात्मा गाँधी के द्वारा किया गया।

मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति में 10 अगस्त, 1928 को एक रिपोर्ट पेश की गई, जो नेहरू रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है। 17 मई, 1927 को कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू द्वारा एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें कांग्रेस के केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान-मण्डलों के निर्वाचित सदस्य व राजनीतिक दलों के नेताओं के परामर्श से भारत के लिए एक संविधान निर्माण का आह्वान किया गया संविधान की रचना हेतु संविधान सभा का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1934 में स्वराज्य पार्टी ने दिया था। जून, 1934 में कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा औपचारिक रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा के गठन व संविधान सभा द्वारा संविधान तैयार किए जाने की मांग की गई।

संविधान सभा की रचना

भारत के संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया, किसकी स्थापना कैबिनेट मिशन योजना, 1946 के अन्तर्गत की गई। संविधान सभा के कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 मुख्य आयुक्त प्रान्तों (चीफ कमिश्नर प्रोविंस दिल्ली, अजमेर-मेरठ, कुर्ग बलूचिस्तान) के प्रतिनिधि, 93 देशी रियासत के प्रतिनिधि थे। संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई तथा वरिष्ठ सदस्य डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना स्या। 11 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष तथा एस सी मुखर्जी को उप-सभापति नियुक्त किया एवं बी एन राव को संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार {Constitutional Advisor) के पद पर चुना गया।

भारत की संविधान सभा

स्थापनाकैबिनेट मिशन योजना, 1946 के अन्तर्गत
कुल सत्रग्यारह
प्रथम सत्र 9 से 23 दिसम्बर, 1946
 ग्यारहवाँ सत्र 14 से 26 नवम्बर, 1949
 हस्ताक्षर हेतु बुलाई गई विशेष बैठक24 जनवरी, 1950

देश का विभाजन होने के उपरान्त मुस्लिम लीग ने संविधान सभा से अपने सदस्यों को वापस बुला लिया। इससे संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 389 से घटकर 299 रह गई। इनमें से 229 प्रान्तों के प्रतिनिधि HAI TO देशी रियासत के प्रतिनिधि थे। संविधान के निर्माण हेतु संविधान सभा ने 22 समितियों का गठन किया। इनमें से 12 समितियाँ मूल मामलों से सम्बन्धित थीं तथा 10 समितियाँ कार्यविधि सम्बन्धी मामलों से सम्बन्धित थीं। उपरोक्त 22 समितियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में नियुक्त एक 7 सदस्यीय प्रारूप समिति (Draft Committee) ने संविधान का एक प्रस्ताव तैयार किया, जिसे जनवरी, 1948 में प्रकाशित कर दिया गया। जनता को इस प्रारूप पर विचार करने तथा संशोधन बताने के लिए 8 माह का समय दिया गया। कुल 7635 संशोधन सदन में पेश किए गए, जिनमें से 2473 पर बहस हुई और उन्हें निपटाया गया।

प्रारूप को जनता, प्रेस तथा प्रान्तीय सभाओं के साथ विचार-विमर्श के उपरान्त तथा विभिन्न सुझावों पर विचार करने के बाद संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को अन्तत: अपना लिया तथा इस पर संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हस्ताक्षर कर दिए। इस प्रकार संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा। भले ही संविधान के अधिकांश भाग 26 जनवरी, 1950 को लागू हुए, परन्तु नागरिकता, चुनाव, अस्थायी संसद तथा कुछ अन्य प्रावधान तत्काल अर्थात् 26 नवम्बर, 1949 को ही लागू हो गए।

संविधान सभा की प्रारूप समिति

(गठन 29 अगस्त, 1947)

अध्यक्ष डॉ. बी आर अम्बेडकर

सदस्य

• एन गोपालास्वामी आयंगर          • अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर

•  के एम मुंशी                               •  मोहम्मद सदाउल्ला

•  वी एल मित्र (अस्वस्थ होने के कारण त्याग-पत्र दे दिया और उनके स्थान पर एन माधवन राव को नियुक्त किया गया)

•  डी पी खेतान (उनकी मृत्यु वर्ष 1948 में हो गई और उनके स्थान पर टी कृष्णामाचारी को सदस्य बना दिया गया)

संविधान सभा की कमियाँ

संविधान सभा में अनेक कमियाँ थीं, जो निम्न हैं

  1. सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं किया गया था। अत: सही अर्थों में प्रतिनिधि संस्था नहीं थी।
  2. संविधान सभा का गठन ब्रिटिश संसद द्वारा पारित अधिनियम से हुआ। अत: यह प्रभुसत्ता सम्पन्न संस्था नहीं थी।
  3.  संविधान निर्माण में अधिक समय लगा।
  4. संविधान सभा में वकीलों की संख्या अधिक थी। अतः उनके द्वारा निर्मित संविधान में कानूनी भाषा का अत्यधिक प्रयोग किया गया।

उद्देश्य-प्रस्ताव

उद्देश्य प्रस्ताव पण्डित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा 13 दिसम्बर, 1946 को प्रस्तुत किया गया , था। उद्देश्य प्रस्तावना को भारतीय संविधान के दर्शन तथा संगठन का आधार स्तम्भ माना जाता है।

उद्देश्य-प्रस्ताव के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं

  • भारत एक स्वतन्त्र, सम्प्रभु गणराज्य है।
  • भारत ब्रिटेन के अधिकार में आने वाले भारतीय क्षेत्रों, देशी रियासतों और देशी रियासतों के बाहर के ऐसे क्षेत्र, जो हमारे संघ का अंग बनना चाहते हैं, का एक संघ होगा।
  • संघ की इकाइयाँ स्वायत्त होंगी और उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का सम्पादन कर सकेंगी, जो संघ को सुपुर्द नहीं किए गए हैं।
  • सम्प्रभु और स्वतन्त्र भारत तथा इसके संविधान की समस्त शक्तियों और सत्ता का स्रोत जनता है।
  • भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; कानून के समक्ष समानता; प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा कानून और सार्वजनिक नैतिकता की सीमाओं में रहते हुए भाषण, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगठन और कार्य करने की मौलिक अधिकारों की गारण्टी और सुरक्षा दी जाएगी।
  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्र, दलित व अन्य पिछड़े वर्गों को समुचित सुरक्षा दी जाएगी।
  • गणराज्य की क्षेत्रीय अखण्डता तथा जल और आकाश में इसके सम्प्रभु अधिकारों की रक्षा सभ्य राष्ट्रों के कानून और न्याय के अनुसार की जाएगी।
  • विश्वशान्ति और मानव कल्याण के विकास के लिए देश स्वेच्छापूर्वक और पूर्ण योगदान करेगा।

संविधान सभा की प्रकृति

संविधान सभा की प्रभुसत्ता का प्रश्न

संविधान सभा के गठन और उसके क्रियान्वयन के तुरन्त बाद संविधान सभा की स्थिति के सम्बन्ध में एक विवाद प्रारम्भ हो गया। विंस्टन चर्चिल ने संविधान सभा की वैधता को ही चुनौती दे डाली। इस पर संविधान सभा में काफी वाद-विवाद हुआ। अन्त में संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों ने प्रतिबन्धों एवं अनावश्यक विवादों को शान्त करते हुए, संविधान सभा की सम्प्रभुता (Sovereignty) पर बल दिया।

इस सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू का वक्तव्य विचारणीय है, जिसमें उन्होंने कहा कि “आजादी और ताकत के मिलते ही हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गई हैं। संविधान सभा इन जिम्मेदारियों को निभाएगी। संविधान सभा एक पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न संस्था है, वह देश के स्वतन्त्र नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती है।” इस विचार के अनुसार, संविधान सभा ने अपनी पूर्ण प्रभुता को प्रदर्शित करते हुए प्रस्ताव पारित किया कि ब्रिटिश सरकार या अन्य किसी भी सत्ता के आदेश से सभा का विघटन नहीं होगा।

संविधान सभा को तभी भंग किया जाएगा, जबकि सभा स्वयं 2/3 बहुमत से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दे एवं संविधान सभा ने सभा संचालन की पूर्ण शक्ति अपने निर्वाचित सभापति को दे दी।

संविधान सभा का प्रतिनिधिक स्वरूप

आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में जन साधारण के प्रतिनिधि (Representative) नहीं थे अर्थात् उसके सदस्यों का चुनाव देश के सभी वयस्क नागरिकों ने नहीं किया था। यह ठीक है कि संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) के आधार पर नहीं चुने गए थे, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम संविधान सभा को प्रतिनिधिक संस्था नहीं माने। संविधान सभा में लगभग सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधि शामिल थे।

कांग्रेस की प्रधानता

के अय्यर, तत्कालीन भारतीय राजनीति के सर्वाधिक प्रमुख दल कांग्रेस ने संविधान सभा को अधिक-से-अधिक प्रतिनिधिक स्वरूप प्रदान करने की हर सम्भव कोशिश की। संविधान सभा में अनेक ऐसे व्यक्तियों का निर्वाचन हुआ, जो कांग्रेस से सम्बद्ध नहीं थे; जैसे-डॉ. भीमराव अम्बेडकर, ए सच्चिदानन्द सिन्हा, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इत्यादि। इन व्यक्तियों ने संविधान सभा को तकनीकी आधार प्रदान किया। संविधान के मूल स्वरूप का निर्माण करने, उसको दार्शनिक आधार देने तथा उसे उद्देश्यपूर्ण बनाने में इन व्यक्तियों तथा इनकी सामाजिक एवं व्यावसायिक पृष्ठभूमि की निर्णायक भूमिका रही। इस सम्बन्ध में सभा की सद्गुणता का प्रमाण यह है कि संविधान सभा के जो सदस्य लीग के टिकट पर चुने गए थे, उन्होंने भी भारत के विभाजन के बाद भारत में ही रहना पसन्द किया तथा उन्हें भी संविधान सभा की सदस्यता दी गई। लीग के प्रतिनिधि मोहम्मद सादुल्ला प्रारूप समिति के भी सदस्य थे।

कानून के प्रकाण्ड विद्वानों का बोलबाला

संविधान सभा में कानून के बहुत बड़े विद्वान्; जैसे—के एम मुंशी, कृष्णास्वामी अय्यर, ठाकुर दास भार्गव आदि शामिल थे। ये सभी व्यक्ति ब्रिटिश संसदीय प्रणाली (British Parliamentary System) से बहुत ज्यादा प्रभावित थे, साथ ही वे न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के सिद्धान्त में भी आस्था रखते थे एवं मौलिक अधिकारों के भी समर्थक थे।

संविधान सभा के वाचन

वाचन (अधिवेशन) समयावधि
प्रथम वाचन 9-23 दिसंबर, 1946
द्वितीय वाचन 20-25 जनवरी, 1947
 तृतीय वाचन 28 अप्रैल-2 मई, 1947
चतुर्थ वाचन14-31 जुलाई, 1947
पंचम वाचन14-30 अगस्त, 1947
   षष्ठ वाचन 27 जनवरी, 1948
सप्तम वाचन4 नवम्बर, 1948-8 जनवरी, 1949
अष्टम वाचन 16 मई-16 जून, 1949
नवम वाचन 30 जुलाई-18 सितम्बर, 1949
दशम वाचन 6-17 अक्टूबर, 1949
एकादश वाचन14-26 नवम्बर, 1949

विभिन्न समितियाँ एवं उनके प्रमुख

समिति का नामप्रमुख
प्रारूप समितिडॉ. भीमराव अम्बेडकर
संचालन समितिडॉ. राजेन्द्र प्रसाद
वित्त एवं कर्मचारी समितिडॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रत्यक्ष पत्र समितिअल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर
सदन समिति बी. पट्टाभि सीतारम्मैया
कार्य संचालन समिति  के. एम. मुंशी
तदर्थ झंडा समितिडॉ. राजेन्द्र प्रसाद
संविधान सभा कार्य समितिश्री जी. वी. मावलंकर
प्रांतीय समितिजवाहर लाल नेहरू
मूल अधिकार, अल्पसंख्यक जनजातीय एवं दूरस्थ क्षेत्र के लिए सलाहकार समिति  बल्लभ भाई पटेल
    अल्पसंख्यक मामलों की उप समिति एच सी मुखर्जी
  मूल अधिकार के लिए उप समिति जे. वी. कृपलानी
उत्तरपूर्व सीमांत जनजातीय क्षेत्र तथा असम के दूरस्थ एवं आंशिक दूरस्थ क्षेत्र के लिए उप समितिगोपीनाथ बोरदोलई
संघीय कार्य समिति जवाहरलाल नेहरू
संघीय संविधान समिति जवाहरलाल नेहरू

संविधान का प्रारम्भ

भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत किया गया, जबकि यह 26 जनवरी, 1950 को पूर्णत: लागू हुआ। 26 जनवरी को ही इसके लागू होने के पीछे जो कारण हित था, वह यह था कि सर्वप्रथम 30 दिसम्बर, 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में इसके अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय आन्दोलन का लक्ष्य स्वराज से बदलकर। ‘पूर्ण स्वतन्त्रता’ घोषित किया, तथा 26 जनवरी 1930 को स्वतन्त्रता दिवस मनाने की घोषणा की, जिसके तहत इस तारीख को प्रथम स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया। इसी दिवस की गौरवशाली स्मृति को संजोए रखने के लिए तथा इतिहास में इसकी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए स्वतन्त्र भारत के संविधान को इसी दिन लागू किए जाने का निर्णय संविधान सभा ने किया। अनुच्छेद 395 के अन्तर्गत संविधान के लागू होते ही भारत सरकार अधिनियम संविधान के द्वारा प्रतिस्थापित हो गई। इसके साथ ही संविधान सभा ने संविधान निर्माण के अतिरिक्त कुछ विशेष विधायी कार्य भी सम्पन्न किए; जैसे कि

  •  1949 में भारत द्वारा कॉमनवेल्थ देशों के संगठन की सदस्यता की अभिपुष्टि की।
  • 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्र ध्वज स्वीकार किया गया।
  • 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान स्वीकार किया।
  • 24 जनवरी, 1950 को ही राष्ट्रीय गीत स्वीकार किया।
  • 24 जनवरी, 1950 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का प्रथम राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचन किया

तो दोस्तों यहा इस पृष्ठ पर संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया गया है अगर ये संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आपको पसंद आया हो तो संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इस पोस्ट को अपने friends के साथ social media में share जरूर करे। ताकि संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में जान सके। और नवीनतम अपडेट के लिए हमारे साथ बने रहे।

Leave a Reply

Top