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वामपन्थी राजनीति की सम्पूर्ण जानकारी

वामपन्थी राजनीति वाम (Left) और दक्षिण (Right) शब्दों का प्रयोग विशेष अर्थ रखता है। जो संस्थाएँ अथवा व्यक्ति क्रान्तिकारी परिवर्तन चाहते हैं, वे वामपन्थी के अन्तर्गत आते हैं, जो वर्तमान स्थिति स्वीकार करते हैं और परिवर्तन नहीं चाहते हैं, वे दक्षिण पन्थी कहलाते हैं। कालान्तर में समाजवाद तथा साम्यवाद के उदय के पश्चात् वामपन्थी शब्द का प्रयोग इनके लिए हुआ।

वामपन्थ का उद्भव

भारत में वामपन्थी विचारधारा की उत्पत्ति प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् उत्पन्न राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप हुई। यद्यपि कई अन्य कारण भी थे, जिन्होंने वामपन्थी आन्दोलन के विकास के लिए आधार का निर्माण किया, ये कारण निम्नलिखित थे

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के शोषण से कुछ भारतीयों का वामपन्थी विचारधारा की ओर झुकाव।
  • आधुनिक उद्योगों की स्थापना, जिससे श्रमिक वर्ग अस्तित्व में आया।
  • श्रमिक आन्दोलन ने वामपन्थी आन्दोलन के आधार पर निर्माण किया।
  • असहयोग आन्दोलन के पश्चात् नए विकल्प की खोज।
  • मार्क्सवादी विचारधारा के प्रति आकर्षण। 2. समाजवादी धारा कांग्रेस के अन्दर
  • वर्ष 1929 की आर्थिक मन्दी से समाजवादी व्यवस्था वाले राष्ट्रों पर प्रभाव नहीं पड़ा, जिससे इस व्यवस्था का प्रभाव स्थापित हुआ।

उपरोक्त परिस्थिति में भारत की वामपन्थी राजनीति के अन्तर्गत अनेक छोटे-बड़े वामपन्थी संगठनों का उद्भव हुआ। यद्यपि भारत के वामपन्थी आन्दोलन का अध्ययन जिन दो मुख्य धाराओं के अन्तर्गत किया जा सकता है, वे निम्न हैं

  1. साम्यवादी धारा कांग्रेस से अलग
  2. समाजवादी धारा से अलग

वामपन्थी या साम्यवादी आन्दोलन

भारत में वामपन्थी विचारधारा को (रूसी क्रान्ति के पश्चात्) फैलाने का कार्य सर्वप्रथम भारतीय साम्यवादी दल ने किया। वर्ष 1918-22 के श्रमिक असन्तोष ने साम्यवाद के विचारों को पनपने का अवसर दिया। बम्बई, बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में पृथक्-पृथक् मजदूरों तथा किसानों के दल का निर्माण हुआ। सर्वप्रथम वर्ष 1920 में एम एन राय द्वारा ताशकन्द में भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना की गई। इसके अन्य सदस्यों में ए टी राय, ए एन मुखर्जी, रोजा फ्लिण्टगॉफ, मोहम्मद अली, मोहम्मद शफीक, आचार्य प्रतिवादी भयंकर, अवनि मुखर्जी प्रमुख थे। आचार्य प्रतिवादी भंयकर इसके अध्यक्ष तथा एम एन राय सचिव थे। एम एन राय का मूल नाम नरेन्द्र भट्टाचार्य था।

एम एन राय ने वर्ष 1922 में अवनि मुखर्जी के सहयोग से बर्लिन से बैंगार्ड ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेंस तथा इण्डिया इन ट्रांजिशन नामक पत्र निकाले। बैंगार्ड ऑफ इण्डियन इण्डिपेण्डेंस भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का पहला पत्र था। बाद में इसका नाम एडवांस गार्ड कर दिया गया। भारत में इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न साम्यवादी संगठनों का उद्भव हुआ तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया। साम्यवादी आन्दोलन के विकास को निम्न चरणों के अन्तर्गत समझा जा सकता है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

सत्यभक्त ने वर्ष 1924 में कानपुर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (साम्यवादी दल) स्थापित की तथा कानपुर में वर्ष 1925 में एक साम्यवादी कॉन्फ्रेन्स का आयोजन किया। इसमें प्रमुख भूमिका सत्यभक्त ने निभाई। इसमें सत्यभक्त का अन्य कम्युनिस्ट नेताओं से मतभेद हो गया तथा वे अलग-थलग पड़ गए। इसके पश्चात् विभिन्न कम्युनिस्ट विचारधारा वाले गुटों ने मिलकर 27 दिसम्बर, 1925 को कानपुर में पुन: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। सिंगारवेलु चेट्टियार इसके संस्थापक थे। इन्होंने ही सर्वप्रथम भारत की स्वतन्त्रता की माँग रखी। पी.सी. जोशी ने वर्ष 1935 से 1947 तक पार्टी के महासचिव पद को सुशोभित किया था। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के पहले महासचिव थे। –

प्रथम चरण

– वर्ष 1921 से 1925 के बीच भारत में अनेक स्थानों पर औपचारिक साम्यवादी गुटों की स्थापना हुई। इस चरण में साम्यवादी दल ने तीन षड्यन्त्रों से सम्बन्धित होने के कारण ध्यान आकर्षित किया-पेशावर षड्यन्त्र मुकदमा, कानपुर षड्यन्त्र मुकदमा तथा मेरठ षड्यन्त्र मुकदमा।

पेशावर षड्यन्त्र मुकदमा (वर्ष 1922-23 ई.) मॉस्को की कम्युनिस्ट यूनिवर्सिटी में प्रशिक्षित 10 भारतीयों को भारत में कम्युनिस्ट आन्दोलन को संगठित करने के लिए भारत भेजा गया। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया एवं पेशावर में उन पर मुकदमा चला। यह मुकदमा वर्ष 1922-23 के पेशावर षड्यन्त्र केस के नाम से प्रसिद्ध है। इन पर ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने का आरोप लगाया गया। अभियुक्तों की तरफ से अब्दुल कादिर ने का सशक्त पैरवी की थी। इनमें दो मुजाहिरों मियाँ मुहम्मद अकबर शाह तथा गौहर रहमान खान को दो साल की कठोर कैद की सजा मिली।

कानपुर षड्यन्त्र मुकदमा (वर्ष 1924)

भारत में साम्यवादी पार्टी की स्थापना की दिशा में प्रयासरत् नेताओं को वर्ष 1924 में सरकार ने गिरफ्तार कर उन पर कानपुर षड्यन्त्र केस के अन्तर्गत मुकदमा का चलाया। कानपुर षड्यन्त्र केस के अन्तर्गत साम्यवादी नेता मानवेन्द्र नाथ राय, सिंगारवेलु चेट्टियार, मुजफ्फर अहमद, श्रीपाद अमृत डांगे, गुलाम हुसैन, के रामचरण लाल शर्मा आदि पर सरकार के विरुद्ध यन षड्यन्त्र रचने, क्रान्तिकारी गतिविधियों को संचालित करने भारत में साम्राज्ञी की सत्ता को उखाड़ने का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया। मई, 1924 में श्रीपाद अमृत डांगे, मुजफ्फर अहमद, नलिन गुप्ता  तथा शौकत उस्मानी को कानपुर षड्यन्त्र केस के तहत चार वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।

मेरठ षड्यन्त्र मुकदमा (वर्ष 1929-33)

कम्युनिस्टों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1928-29 में जन सुरक्षा कानून, ह्विटले कमीशन, ट्रेड डिस्प्यूट बिल तथा मेरठ षड्यन्त्र केस का सहारा लिया। वर्ष 1929 में मेरठ षड्यन्त्र केस में कुल 32 लोगों पर मुकदमा चला, जिसमें तीन अंग्रेज़ (फिलिप स्प्रेट, वेन ब्रैडले तथा लेस्टर हचिन्सन) भी थे। यह मुकदमा साढ़े तीन साल चला। मेरठ षड्यन्त्र केस के विरोध में 21 मार्च, 1929 को मोतीलाल नेहरू ने केन्द्रीय विधानसभा में ब्रिटिश काम रोको प्रस्ताव पेश किया।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटाइन ने ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री मैकडोनाल्ड को पत्र लिखकर इस मुकदमे को हटा लेने की बात कही। मेरठ षड्यन्त्र केस में अभियुक्तों की ओर से जवाहरलाल नेहरू, एम ए अंसारी, कैलाशनाथ काटजू, एम जी छागला ने पैरवी की। मुकदमे का फैसला 16 जनवरी, 1933 को सुनाया गया। 27 अभियुक्तों को कड़ी सजा दी गई। मुजफ्फर अहमद को सबसे कड़ी सजा दी, आजीवन काला पानी भेज दिया गया।

दूसरा चरण

इस चरण में साम्यवादी आन्दोलन को संगठन और विचारधारा सम्बन्धी प्रश्नों के कारण बहुत हानि उठानी पड़ी। वर्ष 1928 के साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के संकेत प्राप्त कर इन्होंने भारतीय कांग्रेस के वामपन्थी और दक्षिणी पन्थी अंगों पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया। यह वही समय था, जब कांग्रेस ने साइमन आयोग का बहिष्कार किया था, पूर्णस्वराज का प्रस्ताव पारित किया था एवं द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया था। भारतीय साम्यवादी दल ने चाहा कि वह इस संघर्ष को त्रिकोण का रूप देकर कांग्रेस की शक्ति कम कर दे। उन्हें यह विश्वास था कि कांग्रेस उन उद्योगपतियों का समर्थन कर रही है, जो श्रमिक वर्ग का शोषण कर रहे हैं। अत: कांग्रेस भी उतनी ही दोषी है, जितने साम्राज्यवादी शोषक। सरकार ने कम्युनिस्टों का कांग्रेस से अलगाव का फायदा उठाते हुए 23 जुलाई, 1934 को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया पर प्रतिबन्ध लगा दिया।

तीसरा चरण

वर्ष 1935 में साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इससे निर्देशन प्राप्त कर वर्ष 1936 में आर पी दत्त और बैनब्रैडले ने ‘भारत में साम्राज्यवाद विरोधी जनता का मोर्चा’ नाम से निबन्ध प्रकाशित किया, उन्होंने साम्यवादियों को सुझाव दिया कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सम्मिलित हो जाएँ। इसके माध्यम से वे कांग्रेस समाजवादी दल को सुदृढ़ बनाएँ और जो प्रतिक्रियावादी दक्षिणपन्थी लोग हैं, उन्हें वहाँ से निकाल बाहर करें। वर्ष 1937 में कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों की स्थापना के उपरान्त हुई मजदूर हड़तालों की जाँच के लिए कानपुर श्रमिक जाँच समिति बनी। कानपुर श्रमिक जाँच समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद थे।

चौथा चरण

द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ पर साम्यवादियों ने साम्राज्यवाद के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा नीति का अनुसरण किया अर्थात् अंग्रेजों के साथ सहयोग न करने की नीति अपनाई तथा इस अवसर का प्रयोग भारत की स्वतन्त्रता के लिए करने का प्रयास किया। जब जून, 1941 में हिटलर ने रूस पर आक्रमण कर दिया, तो भारतीय साम्यवादियों की स्थिति बहुत विचित्र-सी हो गई। भारतीय साम्यवादी अब इस युद्ध को लोक युद्ध की संज्ञा देने लगे तथा इस हेतु उन्होंने ब्रिटेन का समर्थन करने की नीति अपनाई। भारत सरकार ने भी इसे तुरन्त वैध संस्था घोषित कर दिया। जब अगस्त, 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो का नारा लगाया, तो साम्यवादियों ने इस आन्दोलन को अन्तर्ध्वस्त करने के लिए अंग्रेजों की ओर से भेदियों की भूमिका निभाई।

पाँचवाँ चरण

इस चरण में साम्यवादी दल की नीति भारत में एक सशक्त संघ की स्थापना न करके इसको बहुत-से छोटे-छोटे स्वायत्त राज्यों में बाँटने की थी। वर्ष 1942 में दल ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें यह घोषणा की गई कि भारत एक बहुराष्ट्रवादी राज्य है और इसमें न्यूनतम 16 ‘राष्ट्र’ हैं। वर्ष 1946 में उन्होंने मन्त्रिमण्डलीय शिष्ट मण्डल के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा कि भारत को 17 पृथक् प्रभुसत्ता पूर्ण राज्यों में बाँट दिया जाए, जैसे कि बाल्कन में या रूसी समाजवादी सोवियत संघ में हुआ था। वर्ष 1947 तक साम्यवादी दल वह स्थान खो बैठे, जो उन्होंने प्रारम्भ में राजनैतिक रूप से प्राप्त किया था।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी

वर्ष 1934 में कांग्रेस के बहुत बड़े भाग ने कांग्रेस के अन्दर समाजवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के लिए एक पृथक् दल के गठन पर बल दिया। इसी उद्देश्य से जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, अच्युत पटवर्द्धन तथा मीनू मसानी ने मिलकर वर्ष 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की। इसका पहला अखिल भारतीय सम्मेलन 21 अक्टूबर, 1984 को बम्बई में हुआ।

इसकी अध्यक्षता आचार्य नरेन्द्र देव ने की। राममनोहर लोहिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अशोक मेहता, गंगाशरण सिंह, यूसुफ मेहराले आदि इससे जुड़े अन्य प्रमुख नेता थे। कांग्रेस के अन्दर ये समाजवादी भी कम्युनिस्टों की तरह मार्क्सवादी विचारधारा में विश्वास रखते थे, किन्तु समाजवादी कांग्रेसियों एवं कम्युनिस्टों में दो मूलभूत अन्तर थे

  • समाजवादी कांग्रेसी अपने को इण्डियन नेशनल कांग्रेस के साथ जोड़ते थे, जबकि कम्युनिस्ट अपने को कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल से जुड़ा पाते थे।
  • समाजवादी कांग्रेसी राष्ट्रवादी थे, जबकि कम्युनिस्ट एक अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी समाज के लक्ष्य में भी विश्वास रखते थे।

जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचन्द्र बोस जैसे वामपन्थी कांग्रेस नेताओं ने इस पार्टी के गठन का स्वागत तो किया, परन्तु दोनों ही पार्टी में शामिल नहीं हुए। वर्ष 1936 में जवाहरलाल नेहरू ने इस पार्टी के तीन सदस्यों नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्द्धन को कांग्रेस कार्यकारिणी में शामिल किया।

प्रमुख वामपन्थी संगठन

संगठन संस्थापक
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी; ताशकन्द (वर्ष 1920) एम एन राय
बम्बई में कम्युनिस्ट ग्रुप  श्री पाद अमृत डांगे
 लेबर किसान पार्टी, मद्रास (वर्ष 1923)सिंगारवेलु चेट्टियार
लाहौर में कम्युनिस्ट ग्रुप गुलाम हुसैन
 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी; कानपुर (वर्ष 1924)सत्यभक्त
लेबर स्वराज पार्टी बंगाल (वर्ष 1923)मुजफ्फर अहमद, नजरुल इस्लाम
मजदूर-किसान पार्टी (बम्बई) वर्ष 1927एच एस पीराजकर दुंडिराज ठेगदी
कीरती किसान पार्टी (पंजाब, वर्ष 1926)सोहन सिंह जोश
यू पी किसान पार्टी (वर्ष 1928)फिलिप स्प्रेट, मुजफ्फर अहमद अब्दुल मजीद, सोहन सिंह जोश, पूरन चन्द्र जोशी
अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी (वर्ष 1928) सोहन सिंह जोश, आर एस निम्बारकर
 भारतीय वोल्शेविक दल (वर्ष 1939) एच दत्त मजूमदार, अजीत राय, शिशिर राय, विश्वनाथ दुबे
क्रान्तिकारी साम्यवादी दल (वर्ष 1942) सौम्येन्द्र नाथ टैगोर
 वोल्शेविक लेनिनिस्ट दल (वर्ष 1941)अजीत राय इन्द्रसेन
अतिवादी लोकतन्त्र दल (वर्ष 1940)एम एन राय

वामपन्थी पत्र-पत्रिकाएँ

पत्र/पत्रिकाएँसंस्थापक पत्र/पत्रिकाएँसंस्थापक
 द सोशलिस्टश्रीपाद अमृत डांगेनिर्बल सेवक (हिन्दी, उर्दू)राजा महेन्द्र प्रताप
नवयुगमुजफ्फर अहमदलांगलस्वराज पार्टी का मुख-पत्र
बंगालकाजी नजरुल इस्लामक्रान्तिमजदूर किसान पार्टी का मुख-पत्र
इंकलाबगुलाम हुसैनकांग्रेस सोशलिस्टअशोक मेहता
लेबर किसान गजटसिंगारवेलु चेट्टियारसमाजवाद क्यों? जयप्रकाश नारायण
प्रेम (हिन्दी)राजा महेन्द्र प्रतापधूमकेतुकाजी नजरुल इस्लाम

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