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गवर्नर / गवर्नर जनरल / वायसराय के बारे में पूरी जानकारी

गवर्नर / गवर्नर जनरल / वायसराय के बारे में पूरी जानकारी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का कार्य संचालन 1772 ई. तक बंगाल के गवर्नर के द्वारा किया जाता था, यद्यपि मद्रास एवं बम्बई में भी गवर्नर होते थे। 1772 ई. के पश्चात् बंगाल का गवर्नर; गवर्नर-जनरल हो गया, जो 1833 ई. तक जारी रहा। वारेन हेस्टिंग्स प्रथम गवर्नर-जनरल था। 1833 ई. से 1857 ई. तक बंगाल का गवर्नर-जनरल, भारत का गवर्नर-जनरल कहलाया। लॉर्ड विलियम बैण्टिक भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल था। 1857 ई. की क्रान्ति के बाद भारत के गवर्नर-जनरल का पद समाप्त कर वायसराय नामक पद का सृजन किया गया। लॉर्ड कैनिंग प्रथम वायसराय था। 1935 के एक्ट द्वारा वायसराय के पद को पुन: गवर्नर-जनरल बना दिया गया, जो वर्ष 1950 तक जारी रहा।

लॉर्ड क्लाइव (वर्ष 1757-60; वर्ष 1765-67)

प्लासी युद्ध की विजय (1757 ई.) के बाद क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बनाया गया। क्लाइव ने बक्सर के युद्ध (1764 ई.) में सफलता के बाद 1765 ई. में बंगाल में द्वैध-शासन लागू किया, जो 1772 ई. तक चलता रहा। इसी के कार्यकाल में श्वेत विद्रोह हुआ था। इसकी प्रथम सैन्य कूटनीति, 1754 ई. में अर्काट के किले की किलेबन्दी के समय दिखी थी। इसने ‘सोसायटी फॉर ट्रेड’ की स्थापना की थी। आलमगीर द्वारा इसे उमरा की उपाधि दी गई थी। प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एडमण्ड बर्क ने क्लाइव को बड़ी-बड़ी नींवें रखने वाला कहा था।

क्लाइव के बाद बंगाल के गवर्नर

  •  हालवेल (1760 ई.) इसने ही ब्लैक होल की घटना का वर्णन किया था।
  • वेन्सिटार्ट (1760-65 ई.) बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का गवर्नर था।
  • वेरेलस्ट (1767-69 ई.) द्वैध-शासन के समय यह बंगाल का गवर्नर था।
  • कर्टियर (1769-72 ई.) 1770 ई. में बंगाल में आधुनिक भारत का प्रथम अकाल पड़ा।

वारेन हेस्टिंग्स (वर्ष 1772-85)

वारेन हेस्टिंग्स 1750 ई. में कम्पनी के क्लर्क के रूप में कलकत्ता पहुंचा और शीघ्र ही अपनी योग्यता से कासिम बाज़ार का अध्यक्ष बन गया। इसे 1772 ई. में PM का गवर्नर बनाया गया, तथा रेग्युलेटिंग एक्ट (1773 ई.) के तहत बंगाल का प्रथम गवर्नर-जनरल बनाया गया।

हेस्टिंग्स ने अपने प्रशासनिक सुधार के अन्तर्गत सर्वप्रथम 1772 ई. में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के आदेशानुसार बंगाल से द्वैध शासन को समाप्त तथा सरकारी खजाने का स्थानान्तरण मुर्शिदाबाद से कलकत्ता किया। इसे रियासतों के साथ होने वाली घेरे की नीति (रिंग्स ऑफ फेन्स) का जनक माना जाता है। इसके समय में ही 1784 ई. का पिट्स इण्डिया एक्ट पारित हुआ।

राजस्व सुधार

हेस्टिग्स ने 1772 ई. में राजस्व बोर्ड (बोर्ड ऑफ रेवेन्यू ) का गठन किया। जिसमें भूमि कर सुधार के अन्तर्गत 1772 ई. में कर संग्रहण के अधिकार उच्चतम बोली लगाने वाले जमींदारों को 5 वर्ष के 5 लिए नीलाम कर दिए गए और उन्हें भू-स्वामित्व से मुक्त कर दिया गया।

1773 ई. में कर व्यवस्था में परिवर्तन करते हुए भ्रष्ट कलेक्टरों को पदमुक्त कर भारतीय दीवानों की नियुक्ति की गई। 1776 ई. में पंचवर्षीय व्यवस्था के स्थान पर एक वर्षीय व्यवस्था को लागू किया गया। 1776 ई. में 6 अमीनी कमीशन नियुक्ति का उद्देश्य भारतीय कृषि व्यवस्था से सम्बद्ध अवस्थित सूचना एकत्र करना था।

न्यायिक सुधार

रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत 1774 ई. में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसका प्रथम मुख्य न्यायाधीश एलिजा इम्पे था। इसके तीन अन्य न्यायाधीश लिमैस्टर, चैम्बर्स एवं हाइड थे। हेस्टिंग्स की न्याय व्यवस्था मुगल प्रणाली पर आधारित थी। 1772 ई. में उसने प्रत्येक जिले में एक फौजदारी तथा दीवानी अदालतों की स्थापना की।

बनारस एवं फैजाबाद की सन्धि

हेस्टिंग्स ने अवध के नवाब के साथ 7 दिसम्बर, 1773 में बनारस की सन्धि की, जिसमें इलाहाबाद तथा कड़ा के जिले नवाब को 50 लाख रुपये में बेच दिए गए तथा रुहेलों के विरुद्ध नवाब को कम्पनी ने 40 लाख रुपये के बदले सैन्य सहायता देने का वचन दिया। 1775 ई. में अवध के नवाब आसफउद्दौला से फैजाबाद की सन्धि की गई, जिसके तहत बनारस का राजा चेतसिंह कम्पनी का आश्रित हो गया। पहले वह अवध का आश्रित था। उसे 22.5 लाख रुपये अब कम्पनी को देने थे, किन्तु उस पर अवज्ञा का आरोप लगाकर 50 लाख रुपये जुर्माना लगाया गया। चेतसिंह भाग गया और उसके भतीजे महीप नारायण को राजा बना दिया गया, जिसने 40 लाख रुपये वार्षिक कम्पनी को देना स्वीकार किया।

सामाजिक सुधार

हेस्टिंग्स के सामाजिक सुधार के अन्तर्गत सर विलियम जोन्स द्वारा 1784 ई. में द एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना की गई। कलकत्ता में मुस्लिम शिक्षा के विकास के लिए मदरसा स्थापित किया गया तथा हिन्दू-मुस्लिम विधियों को भी एक पुस्तक का रूप देने का प्रयत्न किया। हॉलहेड ने 1778 ई. में संस्कृत व्याकरण प्रकाशित किया।

गीता के अंग्रेज़ी अनुवादक चार्ल्स विल्किन्स को वारेन हेस्टिग्स ने आश्रय प्रदान किया। विल्किन्स ने फारसी व कला मुद्रण के लिए ढलाई के अक्षरों का आविष्कार किया। 1791 ई. में जोनाथन डंकन ने बनारस में संस्कृत विद्यालय की स्थापना की।

नन्द कुमार विवाद

नन्द कुमार जो मुर्शिदाबाद का भूतपूर्व दीवान था, उसने हेस्टिंग्स पर यह आरोप लगाया था कि उसने मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम से 3.5 लाख रुपये नवाब मुबारिकुद्दौला का संरक्षक बनने के लिए घूस लिया था। हेस्टिंग्स ने न्यायाधीश एलिजा इम्पे की सहायता से नन्दकुमार को ही झूठे तथा जालसाजी के मुकदमें में फँसा कर उसे फाँसी पर लटका दिया। इसे न्यायिक हत्या कहा गया है।

पिट्स इण्डिया एक्ट के विरोध में इस्तीफा देकर जब वारेन हेस्टिंग्स फरवरी, 1785 में इंग्लैण्ड पहुँचा, तो बर्क द्वारा उसके ऊपर महाभियोग लगाया गया। ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में 1788 ई. से 1795 ई. तक महाभियोग चला, परन्तु संसद ने उसे सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।

लॉर्ड कार्नवालिस (वर्ष 1786-93)

वारेन हेस्टिग्स के बाद सर जॉन मैकफरसन ने भारत में अस्थायी नियुक्ति पर मात्र एक वर्ष (1785-86 ई.) कार्य किया। 1786 ई. में कम्पनी ने एक कुशल एवं योग्य व्यक्ति लॉर्ड कार्नवालिस को पिट्स इण्डिया एक्ट के अन्तर्गत रेखांकित शान्ति स्थापना तथा शासन के पुनर्गठन हेतु गवर्नर-जनरल नियुक्त कर भारत भेजा। कार्नवालिस ने अपने उल्लेखनीय कार्यों द्वारा निम्नलिखित सुधार किए

न्यायिक सुधार

कार्नवालिस कोड शक्तियों के के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धान्त पर आधारित था, जिसके तहत न्याय प्रशासन तथा कर को पृथक्- कर दिया गया अर्थात् कलेक्टर की न्यायिक व फौजदारी शक्तियाँ ले ली गईं तथा उसके पास केवल कर सम्बन्धी शक्तियाँ रह गईं। ऐसा करने के पीछे उसका तर्क था कि एक व्यक्ति में इतनी परम शक्ति का होना अवांछनीय है। उसने वकालत के पेशे को भी नियमित बनाया।

सिविल सेवा सुधार

कार्नवालिस को भारत में सिविल सेवा परीक्षा का जन्मदाता माना जाता है। सिविल सेवा परीक्षा प्रारम्भ में इंग्लैण्ड में होती थी। प्रथम भारतीय IAS सत्येन्द्रनाथ टैगोर 1863 ई. में बने। प्रारम्भ में इस परीक्षा की अधिकतम आयु सीमा 23 वर्ष थी, जिसे लिटन ने घटाकर 19 वर्ष कर दिया था।

पुलिस सुधार

कार्नवालिस ने ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस अधिकारों को समाप्त कर थानों की स्थापना की और वहाँ एक दरोगा व कुछ पुलिस कर्मचारी नियुक्त किए। अंग्रेज़ी दण्डनायकों (Magistrates) को जिले की पुलिस का भार दिया गया। इस प्रकार कार्नवालिस ने पुलिस तथा न्यायिक प्रशासन को सीधे अपने अधीन कर लिया।

राजस्व सुधार

कार्नवालिस ने 1787 ई. में प्रान्त को राजस्व क्षेत्रों (36 घटाकर 23 कर दी) में विभाजित कर उन पर एक कलेक्टर नियुक्त कर दिया। 1790 ई. में जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया। शर्त यह थी कि वे कम्पनी को वार्षिक कर देते रहें। उसने रेवेन्यू बोर्ड की स्थापना की।

कार्नवालिस ने व्यापारिक सुधारों के तहत ठेकेदारों के स्थान पर व्यापारिक प्रतिनिधियों द्वारा माल लेने की व्यवस्था बना दी तथा निजी व्यापार को समाप्त कर दिया। कम्पनी के कार्यकर्ताओं के वेतन को बढ़ाकर बेइमानी व धूर्तबाजी को खत्म करने का प्रयास किया। साथ ही, उसने प्रत्येक पदाधिकारी को भारत में आने से पूर्व अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने को अनिवार्य किया।

स्थायी बन्दोबस्त

कार्नवालिस का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की स्थायी भूमि की व्यवस्था करना था। बंगाल की स्थायी भूमि व्यवस्था पर अन्तिम निर्णय कार्नवालिस ने सर जॉन शोर के सहयोग से लिया और अन्तिम रूप से जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया। 1790 ई. में बंगाल के जमींदारों को भूमि के लिए दस वर्षीय लगान व्यवस्था लागू की गई, जिसे बाद में 1793 ई. में स्थायी कर दिया गया। इसे ही बाद में स्थायी बन्दोबस्त कहा गया।

इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदारों को भू-राजस्व का 10/11 भाग कम्पनी को तथा 1/11 भाग अपनी सेवाओं के लिए अपने पास रखना था। कम्पनी ने यद्यपि इसे पूरी तरह से अपने हित में बताया, परन्तु शीघ्र ही यह व्यवस्था उत्पीड़न तथा शोषण का साधन बन गई।

कार्नवालिस दोबारा 1805 ई. में भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। इसने होल्कर व सिन्धिया को शान्त करने का प्रयत्न किया और राजपूत रियासतों से अंग्रेज़ी कम्पनी की सुरक्षा को वापस लेने का प्रयत्न किया। इसी दौरान 1805 ई. में उसकी गाजीपुर में मृत्यु हो गई। गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में ही उसकी समाधि है।

सर जॉन शोर (वर्ष 1793-98)

ब्रिटिश संसद ने सर जॉन शोर के समय में 1793 ई. का चार्टर एक्ट पास किया। इसने देशी राज्यों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया तथा जमींदारों को भूमि का वास्तविक स्वामी माना। सर जॉन शोर के समय में ही निजाम और मराठों के बीच 1795 ई. में खुर्दा का युद्ध लड़ा गया।

लॉर्ड वेलेजली वर्ष 1798-1805)

1798 ई. में रिचर्ड वेलेजली जिसे माक्विस ऑफ वेलेजली के नाम से जाना जाता है, बंगाल का गवर्नर-जनरल बना। लॉर्ड वेलेजली बंगाल का शेर के उपनाम से प्रसिद्ध था। वह अपनी सहायक सन्धि प्रणाली के कारण प्रसिद्ध हुआ। लॉर्ड वेलेजली द्वारा कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश नागरिकों को भारत में प्रशासन हेतु प्रशिक्षित करना था। वेलेजली द्वारा इसकी स्थापना वर्ष 1800 में की गई थी। सहायक सन्धि का प्रयोग वेलेजली से पूर्व भारत में डूप्ले द्वारा भी किया गया था।

सहायक सन्धि प्रणाली

भारत में फ्रांसीसियों (नेपोलियन) के भय को समाप्त करने तथा अंग्रेज़ी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से वेलेजली ने भारत में सहायक सन्धि प्रणाली को प्रचलित किया। इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्यों के वैदेशिक सम्बन्ध अंग्रेज़ी राज्य के अधीन हो जाते थे, परन्तु उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था। सहायक सन्धि करने वाले प्रत्येक राज्य को अपनी राजधानी में एक अंग्रेज़ी रेजीडेण्ट को रखना पड़ता था तथा कम्पनी की पूर्व आज्ञा के बिना राजा किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं ले सकता था।

सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों का क्रम है-हैदराबाद (1798 ई.), मैसूर (1799 ई.), तंजौर (1799 ई.), अवध (1801 ई.), पेशवा (1802 ई.), भोंसले (1803 ई.), सिन्धिया (1804 ई.)।

इन राज्यों के अलावा सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले अन्य राज्य थे—जयपुर, जोधपुर, मच्छेड़ी, बूंदी तथा भरतपुर। तंजौर (1799) व कर्नाटक (1801) पर अधिकार के बाद इसके समय में ही 1801 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी का सृजन किया गया। इसके कार्यकाल में द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1802-03 ई.) हुआ। वेलेजली के समय में ही 1802 ई. में मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेज़ों के बीच बसीन या बसई की सन्धि हुई। इस सन्धि के अन्तर्गत पेशवा अंग्रेजों की सेना की छ: बटालियनों का खर्च वहन करने को राजी हुआ।

लॉर्ड वेलेजली के समय चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.) हुआ, जिसमें श्रीरंगपट्टम का दुर्ग जीत लिया गया और टीपू सुल्तान को वीरगति प्राप्त हुई। 1799 ई. में वेलेजली ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया। नागरिक सेवा में भर्ती किए गए युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए 1800 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। 1803 ई. में इसने शिशु हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया।

सर जॉर्ज बार्लो (वर्ष 1805-07)

इसने अहस्तक्षेप की नीति का कठोरता से पालन किया। उसने सिन्धिया को ग्वालियर तथा गोहद के प्रदेश वापस कर दिए। राजपूतों से ब्रिटिश सुरक्षा को वापस ले लिया, किन्तु उसने डायरेक्टरों की आज्ञा के विरुद्ध बसीन की सन्धि जारी रखी। इसी के काल में वेल्लोर में फ सिपाहियों का विद्रोह (1806) हुआ, जिसका मुख्य कारण फौज़ी वर्दियों को पहनने, बालों को कटाने आदि से सम्बन्धित था, जिसे मद्रास के गवर्नर विलियम बैण्टिक ने दबाया। इस विद्रोह के कारण बालों को वापस बुला लिया गया।

 लॉर्ड मिण्टो प्रथम वर्ष 1807-13)

गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आने से पूर्व वह नियन्त्रण बोर्ड का अध्यक्ष था। इसके समय में पर्शिया के शाह से एक सन्धि हुई, जिसके अनुसार कोई भी विदेशी सेना उसकी अनुमति के बिना उसके क्षेत्रों से नहीं गुजर सकती थी। 1809 ई. में लॉर्ड मिण्टो ने रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की सन्धि की, जिस पर अंग्रेज़ों की ओर से चार्ल्स मैटकॉफ ने हस्ताक्षर किए।

लॉर्ड हेस्टिंग्स (वर्ष 1813-23)

लॉर्ड हेस्टिंग्स भारत में इस दृढ़ संकल्प के साथ आया कि वह देशी राज्यों के प्रति हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन करेगा, किन्तु बाद में उसने अनुभव किया कि देश की स्थिति ऐसी है कि उस नीति पर चलना सम्भव नहीं है।

आंग्ल-नेपाल युद्ध (वर्ष 1814-16)

सर्वप्रथम लॉर्ड हेस्टिंग्स को नेपाल के विरुद्ध 1814 ई. में कार्रवाई करनी पड़ी। अंग्रेज़ कर्नल निकल्सन तथा गार्डनर के नेतृत्व में अल्मोड़ा पर अधिकार करने में सफल हो गए। गोरखा नेता अमर सिंह थापा हार गया तथा मार्च, 1816 में संगौली की सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। संगौली की सन्धि के अनुसार, गढ़वाल, कुमाऊँ, शिमला, रानीखेत एवं नैनीताल अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गए तथा गोरखों ने काठमाण्डू में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना स्वीकार कर लिया।

पिण्डारियों का दमन (वर्ष 1817-18)

हेस्टिंग्स को पिण्डारियों के दमन का भी श्रेय प्राप्त है। पिण्डारी लुटेरों का एक दल था, तथा मुस्लिम दोनों सम्मिलित थे। हेस्टिग्स ने पिण्डारियों के दमन के लिए उत्तरी सेना की कमान स्वयं सँभाली, जबकि दक्षिणी सेना की कमान टॉमस हिसलोप को दी। पिण्डारी नेताओं में वासिल मोहम्मद ने सिन्धिया के यहाँ शरण ली, किन्तु सिन्धिया ने इसे अंग्रेज़ों को सौंप दिया। करीम खाँ को गोरखपुर में एक छोटी-सी रियासत दे दी गई और चीतू को शेर मारकर खा गया। अमीर खान को टोंक का नवाब बना दिया गया। 1824 ई. तक पिण्डारियों का सफाया कर दिया गया।

मराठा संघका अन्त

हेस्टिंग्स ने मराठों को तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध में पराजित कर मराठा संघ को भंग कर दिया। 1 जून, 1817 को पेशवा ने अपनी हार स्वीकार कर एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार मराठा संघ समाप्त हो गया। हेस्टिंग्स ने बाजीराव द्वितीय को गद्दी से उतारकर 18 लाख रुपये वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के समीप बिठूर नामक स्थान पर भेज दिया।

भूमि व्यवस्था

हेस्टिंग्स के समय में ही एलफिन्स्टन ने बम्बई में रैयतवाड़ी व्यवस्था को लागू किया। बंगाल में रैयत के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए 1822 ई. में ‘टैनेन्सी एक्ट’ या ‘काश्तकारी अधिनियम’ लागू किया गया, जिसके अनुसार यदि रैयत अपना निश्चित किराया देती रहे, तो उसे विस्थापित नहीं किया जाएगा।

लॉर्ड एमहर्स्ट (वर्ष 1823-28)

लॉर्ड एमहर्ट के समय की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बर्मा का प्रथम युद्ध तथा भरतपुर का उत्तराधिकार युद्ध है। इसी के काल में आंग्ल-बर्मा युद्ध (1824-26 ई.) भी लड़ा गया। जिसका अन्त 1826 ई. की याण्डबू की सन्धि से हुआ। सन्धि के अनुसार बर्मा नरेश महाबन्दुला ने अंग्रेज़ी कम्पनी को अराकान तथा तनासरिम के प्रान्त दिए। साथ ही मणिपुर की स्वतन्त्रता को स्वीकार कर लिया गया और अपनी राजधानी में एक अंग्रेज़ रेजीडेण्ट को रखना भी स्वीकार कर लिया।

1824 ई. का बैरकपुर सैन्य विद्रोह भी इसी के समय हुआ। फौज़ की एक टुकड़ी को बर्मा जाने की आज्ञा दी गई। सिपाहियों ने विचार किया कि वे ऐसा करके अपनी जाति से भ्रष्ट हो जाएँगे। इसलिए उन्होंने आज्ञा मानने से इनकार कर दिया। विद्रोह दबा दिया गया तथा फौजियों को गोली से उड़ा दिया गया। यह पहला गवर्नर-जनरल था, जो मुगल सम्राट (अकबर-II) से बराबरी के स्तर पर मिला था।

लॉर्ड विलियम बैण्टिंक (वर्ष 1828-35)

यह बंगाल का अन्तिम गवर्नर-जनरल तथा भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल था। इसके पूर्व वह 1803 ई. में मद्रास का गवर्नर नियुक्त किया गया था। 1806 ई. में उसने सैनिकों के माथे पर जातीय चिह्न लगाने और कानों में बालियाँ पहनने पर रोक लगा दी थी, जिससे वेल्लोर में प्रथम धार्मिक सैनिक विद्रोह हुआ। बैण्टिक ह्विग (उदारवादी) था। बैण्टिक अपनी विजय के कारण ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए याद किया जाता है।

सामाजिक सुधार

सती तथा ठगी प्रथा का अन्त बैण्टिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर दिसम्बर, 1829 में एक अधिनियम द्वारा विधवाओं के सती होने को अवैध घोषित किया। प्रारम्भ में यह कानून केवल बंगाल प्रेसीडेन्सी में लागू किया गया था, पर 1830 ई. में इसे बम्बई एवं मद्रास प्रेसीडेन्सियों में भी लागू किया गया। ठगी प्रथा की समाप्ति के लिए बैण्टिक ने कर्नल स्लीमन की नियुक्ति की। 1830 ई. तक ठगी प्रथा का अन्त हो गया।

नरबलि व शिशु हत्या पर प्रतिबन्ध बैण्टिक ने नरबलि तथा राजपूतों में बालिका शिशु हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगाया।

सरकारी सेवाओं में भेदभाव का अन्त 1833 ई. के चार्टर एक्ट की धारा-87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना गया। कम्पनी के अधीनस्थ किसी भी भारतीय नागरिक को ‘उसके धर्म, जन्मस्थान, जाति अथवा रंग’ के आधार पर किसी पद से वंचित नहीं रखा जा सकेगा; यह बात स्वीकार की गई।

समाचार-पत्रों के प्रति उदार नीति समाचार-पत्रों के प्रति बैण्टिक की नीति उदार थी। वह इसे असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार मानता था। उसके भत्ता बन्द करने तथा अन्य वित्तीय सुधारों पर समाचार-पत्रों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। इस पर भी वह उनकी स्वतन्त्रता के पक्ष में ही रहा।

न्यायिक सुधार

न्याय सम्बन्धी सुधारों में चार्ल्स मैटकॉफ, बटरवर्थ, बेली तथा हाल्ट मैकेंजी ने बैण्टिक की मदद की। बैण्टिक के न्यायिक सुधारों का विस्तृत विवेचन, ब्रिटिश काल की प्रशासनिक नीतियों के अन्तर्गत अगले अध्याय में किया गया है।

वित्तीय सुधार

वित्तीय सुधारों के अन्तर्गत, 1828 ई. में एक आदेश प्रकाशित किया गया, जिसके द्वारा कलकत्ता के चार सौ मील के क्षेत्रों में भत्तों में 50% की कटौती की गई। बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किए गए। रॉबर्ट मार्टिन्स बर्ड के निरीक्षण में पश्चिमोत्तर प्रान्त में ऐसी भू-कर की व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा।

अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बन्दरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई। इसका परिणाम यह हुआ कि कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में वृद्धि हुई। बैण्टिक ने लोहे तथा कोयले के उत्पादन, चाय तथा कॉफी के बगीचों तथा नहरों की परियोजनाओं को भी प्रोत्साहन दिया।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार

1835 ई. में एक प्रस्ताव द्वारा विलियम बैण्टिक ने घोषणा की “ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों में साहित्य तथा विज्ञान की उन्नति करना होना चाहिए तथा शिक्षा के लिए स्वीकृत धन का व्यय सर्वोत्तम रूप से केवल अंग्रेज़ी शिक्षा पर ही होना चाहिए।’ इस प्रकार अंग्रेज़ी को भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया। 1835 ई. में बैण्टिक ने कलकत्ता में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी।

सार्वजनिक सुधार के कार्य

लॉर्ड मिण्टो के समय में प्रारम्भ की गई सिंचाई योजनाओं को विलियम बैण्टिक के समय में कार्यान्वित किया गया। उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में जल को बाँटने के लिए नहरें खोदी गईं। सड़कों में सुधार किया गया। कलकत्ता से दिल्ली तक की जी टी रोड की मरम्मत कराई गई व बम्बई से आगरा तक एक सड़क बनाने का कार्य आरम्भ हुआ।

रियासतों के प्रति नीति

बैण्टिक ने रियासतों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति अपनाई, परन्तु कुछ रियासतों में अव्यवस्था का आरोप लगाकर बैण्टिक ने 1831 ई. में मैसूर, 1834 ई. में कुर्ग तथा कछार की रियासतों को अपने प्रदेश में मिला लिया। हैदराबाद, बूंदी, जोधपुर, कोटा तथा भोपाल में भी बैण्टिक ने अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया था। इसके काल में आगरा एक नई प्रेसीडेन्सी बनी तथा यहाँ एक सर्वोच्च न्यायालय की भी स्थापना हुई। इसने डिविजनल कमिश्नर (मण्डलायुक्त) की नियुक्ति की।

सर चार्ल्स मैटकॉफ (वर्ष 1835-36)

चार्ल्स मैटकॉफ को प्रेस पर से नियन्त्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। समाचार-पत्रों पर से प्रतिबन्ध हटाने के कारण इसे समाचार-पत्रों का मुक्तिदाता कहा जाता है।

लॉर्ड ऑकलैण्ड (वर्ष 1836-42)

इसके शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839-42 ई.) था, जिसमें अंग्रेज़ों को भारी क्षति हुई। अफगानिस्तान की समस्या के समाधान के लिए शाहशुजा, रणजीत सिंह व अंग्रेज़ों के बीच एक त्रिपक्षीय सन्धि (1838 ई.) हुई। इस सन्धि के द्वारा शाहशुजा को अफगानिस्तान की गद्दी पर बैठाया जाना तय हुआ, परन्तु बाद में रणजीत सिंह इस सन्धि से अलग हो गए। लॉर्ड ऑकलैण्ड ने भारत के विभिन्न सरकारी स्कूलों में अनेक छात्रवृत्तियाँ प्रारम्भ की, उसने बम्बई तथा मद्रास में मेडिकल स्कूल स्थापित किए। 1839 ई. में ऑकलैण्ड ने कलकत्ता से दिल्ली तक जी टी रोड का निर्माण शुरू करवाया तथा इसी के समय में ‘शेरशाह सूरी मार्ग’ का नाम बदलकर जी टी रोड (ग्राण्ड ट्रंक रोड) रख दिया गया। ऑकलैण्ड ने ही दोआब में सिंचाई की एक विस्तृत योजना को स्वीकृति दी।

इन्दौर के शासक को शासन व्यवस्था में सुधार के लिए चेतावनी दी और सतारा के नरेश को गद्दी से उतारकर उसके भाई को बैठाया गया। अवध के साथ सन्धि की, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार कर दिया और उसे वापस बुला लिया।

लॉर्ड एलनबरो (वर्ष 1842-44)

भारत में आने से पूर्व उसने कम्पनी के नियन्त्रक बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। एलनबरो के समय में सर चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में 1843 ई. में सिन्ध का विलय किया गया। एलनबरो का कार्यकाल कुशल अकर्मण्यता की नीति का काल कहा जाता है। एलनबरो ने 1843 ई. में दास प्रथा का अन्त कर दिया।

लॉर्ड हॉर्डिंग (वर्ष 1844-48)

भारत में गवर्नर-जनरल के रूप में आने से पूर्व लॉर्ड हॉर्डिंग 20 वर्षों तक ब्रिटिश संसद में रहा था। वह पेनिनसुलर द्वीप युद्ध का नायक था तथा वाटरलू की लड़ाई में भी उसने भाग लिया था। हॉर्डिंग के शासनकाल की सबसे मुख्य घटना प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध थी। यह युद्ध दिसम्बर, 1845 में प्रारम्भ हुआ, जिसमें चार लड़ाइयाँ-मुदकी, सबराँव, बद्दोवल व आलीवाल में हुईं, परन्तु सबराँव की लड़ाई में सिख हार गए तथा युद्ध की समाप्ति लाहौर की सन्धि (1846 ई.) से हुई। इस युद्ध का परिणाम अंग्रेज़ों के पक्ष में रहा व हेनरी लॉरेन्स को रेजीडेण्ट के रूप में नियुक्त किया गया। अंग्रेज़ों ने अपना साम्राज्य जालन्धर से पंजाब तक विस्तृत कर लिया।

उसने नमक कर कम कर दिया तथा बहुत-से चुंगी कर हटा दिए। अनियन्त्रित व्यापार को प्रोत्साहन दिया तथा देसी रियासतों को अपनी-अपनी सीमाओं में सती प्रथा खत्म करने को कहा। पर्वतीय इलाकों में गौण्डों में प्रचलित मानव बलि प्रथा का दमन तथा शिशु हत्या पर रोक हॉर्डिंग के काल की महत्त्वपूर्ण घटना थी।

लॉर्ड डलहौजी (वर्ष 1848-56)

लॉर्ड डलहौजी 36 वर्ष की आयु में गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आया था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को बढ़ाने के लिए उसने यथा सम्भव कार्य किया। उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त (Doctrine of Lapse) के आधार पर अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्वपूर्ण एवं सुधारात्मक कार्यो को भी संम्पन्न किया।

साम्राज्य विस्तार

पंजाब का विलय

द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848 ई.) डलहौजी के समय में हुआ। सिख पूर्ण रूप से पराजित हुए तथा पंजाब अंग्रेज़ी राज्य (1849 ई.) में मिला लिया गया।

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध

लॉर्ड डलहौजी के समय में फॉक्स युद्धपोत के अधिकारी लैम्बर्ट को रंगून भेजा गया और द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम बर्मा की हार तथा लोअर बर्मा एवं पेगू का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय था (1852 ई.)।

सिक्किम का विलय

यह नेपाल और भूटान राज्यों के बीच एक छोटा-सा राज्य था, जिसमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था। इसको 1850 ई. में अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया। 1856 ई. में एक बड़ी कार्यवाही के बाद डलहौजी के कार्यकाल में संथालों के विद्रोहों को दबाने में सफलता प्राप्त की।

व्यपगत का सिद्धान्त

डलहौजी का शासनकाल व्यपगत सिद्धान्त के कई मामलों को लागू करने के लिए प्रसिद्ध है। इस सिद्धान्त का मूल आधार यह था कि चूंकि अंग्रेज़ी कम्पनी भारत में सबसे बड़ी शक्ति है।

इसलिए अधीनस्थ रियासतों अथवा राज्यों को उसकी स्वीकृति के बिना किसी को गोद लेने का अधिकार नहीं था तथा कम्पनी को यह अधिकार प्राप्त था कि वह जब चाहे इस प्रकार की स्वीकृति को लौटा ले।

डलहौजी ने तत्कालीन रजवाड़ों को तीन भागों में बाँटा है

  • वे रजवाड़े जो न ही किसी को कर देते थे और न ही किसी के नियन्त्रण में थे; बिना अंग्रेज़ी हस्तक्षेप के गोद ले सकते थे। 1.
  • वे रजवाड़े जो पहले मुगलों एवं पेशवाओं के अधीन थे, परन्तु अब अंग्रेज़ों के अधीन थे, उन्हें गोद लेने से पहले अंग्रेजों से अनुमति लेना आवश्यक था।
  • वे रियासतें जिनका निर्माण स्वयं अंग्रेजों ने किया था; उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं था।

व्यपगत सिद्धान्त का पालन करते हुए डलहौजी ने 1848 ई. में सतारा, 1849 ई. में जैतपुर तथा सम्बलपुर, 1850 ई. में बघाट, 1852 ई. में उदयपुर, 1853 ई. में झाँसी, 1854 ई. में नागपुर को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।

1856 ई. में अवध को (आउट्रम रिपोर्ट के आधार पर कुशासन के आरोप में) तथा 1853 ई. में बकाया धनराशि वसूलने के लिए बराड़ को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।

प्रशासनिक सुधार

डलहौजी ने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत भारत के गवर्नर-जनरल के कार्यभार को कम करने के लिए बंगाल के लिए एक लेफ्टिनेण्ट गवर्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की। उन नए प्रदेशों को जिन्हें हाल ही में ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था प्रारम्भ की जिसे नॉन-रेगूलेशन प्रणाली कहा जाता है। इसके अन्तर्गत ही प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गवर्नर-जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।

सैन्य सुधार

सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने कलकत्ता में स्थित तोपखाने का कार्यालय मेरठ में तथा सेना का मुख्य कार्यालय शिमला में स्थापित किया। उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजीमेण्ट के’ सैनिकों की संख्या में वृद्धि की। डलहौजी के समय भारतीय सेना एवं अंग्रेज़ी सेना का अनुपात 6 : 1 था।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार

1854 ई. का चार्ल्स वुड का डिस्पैच जो उच्च शिक्षा से सम्बन्धित था, डलहौजी के समय में ही पारित हुआ। प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई।

रेल एवं तार

डलहौजी ने भारत में रेल तथा डाक व्यवस्था प्रारम्भ की। डलहौजी ने तार तथा रेल विभाग को अत्यन्त महत्त्व दिया। उसने रेलों के निर्माण के सम्बन्ध में अंग्रेज़ी निगमों के साथ ठेकों का निश्चय किया। रेलवे लाइन बम्बई से थाणे व दूसरी रेलवे लाइन उसके कार्यकाल में भारत में 1853 ई. में प्रथम 1854 ई. में कलकत्ता से रानीगंज के बीच बिछाई गई। डलहौजी के ही काल में प्रथम तार सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच प्रारम्भ हुई।

डाक सुधार

आधुनिक डाक व्यवस्था का आधार भी डलहौजी के कार्यकाल में ही निश्चित किया गया। डलहौजी ने डाक विभाग में सुधार करते हुए 1854 ई. में नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पारित किया। जिसके अन्तर्गत तीनों प्रेसीडेन्सियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। देश में डाक टिकटों का प्रचलन आरम्भ हुआ। साथ ही डाक विभाग आय का एक स्रोत बन गया।

वाणिज्यिक सुधार

वाणिज्यिक सुधार के अन्तर्गत डलहौजी ने खुले व्यापार की नीति का अनुसरण किया तथा भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया। इसके लिए कराची, बम्बई, कलकत्ता के बन्दरगाहों का विकास किया गया।

सार्वजनिक निर्माण विभाग

डलहौजी से पूर्व फौजी सदस्य ही सार्वजनिक निर्माण कार्य के लिए उत्तरदायी थे, जिससे नागरिक विभाग के कार्यों की उपेक्षा होती थी। डलहौजी ने पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया, जिसके अन्तर्गत , गंगा का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया। पंजाब में बारी दोआब नहा का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया। डलहौजी ने जी टी रोड का निर्माण कार्य भी पुनः शुरू करवाया।

लॉर्ड कैनिंग (वर्ष 1856-62)

लॉर्ड कैनिंग ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अन्तिम गवर्नर-जनरल तथा ब्रिटिश सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था। विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 में लाया गया। भारतीय दण्ड संहिता की स्थापना 1861 ई. में कैनिंग के ही समय में हुई तथा 1861 ई. में प्रसिद्ध भारतीय काउन्सिल अधिनियम पारित हुआ।

इसके समय में ही 1857 ई. का विद्रोह हुआ। 1858 ई. में महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा द्वारा भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन की समाप्ति की गई। बिहार, आगरा तथा मध्य प्रान्त में 1859 ई. का किराया अधिनियम लागू हुआ।

भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में एक-एक उच्च न्यायालय की स्थापना की गई। सैन्य सुधारों के अन्तर्गत कैनिंग ने भारतीय सैनिकों की संख्या घटाते हुए तोपखाने के अधिकार को उनके हाथों से छीन लिया। वुड्स डिस्पैच की सिफारिशों के आधार पर 857 ई. में लन्दन विश्वविद्यालय की तर्ज पर लकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित कए गए।

आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कैनिंग ने ब्रिटिश अर्थशास्त्री विल्सन को भारत बुलाया तथा 500 रुपये से अधिक आय पर आयकर लगा दिया। विल्सन तथा लैंग के सुधारों का परिणाम यह हुआ कि जब कैनिंग भारत से रवाना होने लगा, तब घाटे का बजट नहीं था।

लॉर्ड एल्गिन (वर्ष 1862-63)

भारत में आने से पूर्व एल्गिन कनाडा तथा जमैका के गवर्नर के रूप में भी कार्य कर चुका था। उसके कार्यकाल में वहाबियों का विद्रोह हुआ। उसे वहाबियों के आन्दोलन को दबाने में सफलता प्राप्त हुई। सर्वोच्च एवं सदर न्यायालयों को उच्च न्यायालय के साथ शामिल कर दिया गया।

लॉर्ड एल्गिन ने बनारस, कानपुर, आगरा तथा अम्बाला में अनेक दरबार किए। इन दरबारों का उद्देश्य भारतीय रियासतों को ब्रिटिश सरकार के समीप लाना था। इसकी मृत्यु 1863 ई. में धर्मशाला (तत्कालीन पंजाब) में हुई।

सर जॉन लॉरेन्स (वर्ष 1864-69)

सर जॉन लॉरेन्स को “भारत का रक्षक तथा विजय का संचालक कहा जाता है।” पंजाब को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाए जाने के पश्चात् वह चीफ कमिश्नर नियुक्त किया गया। अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उसने अहस्तक्षेप नीति का पालन किया तथा तत्कालीन शासक शेर अली से दोस्ती की।

1865 ई. में भूटानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसके समय में 1866 ई. में उड़ीसा में तथा 1868-69 ई. में बुन्देलखण्ड एवं राजपूताना में भीषण अकाल पड़ा। इस अकाल से उबरने के लिए सर जॉर्ज कैम्पवेल के नेतृत्व में अकाल आयोग का गठन किया गया, जो अकालों का मुकाबला करने के सबसे सफल उपायों पर विचार कर सके। लॉरेन्स के काल में 1865 ई. में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा आरम्भ हुई। इसी के काल में 1868 ई. में पंजाब तथा अवध के काश्तकारी अधिनियम पारित हुए थे। लॉरेन्स ने आर्थिक सुधार हेतु बहुत-सी रेलें, नहरें तथा सार्वजनिक निर्माण का कार्य कराया।

लॉर्ड मेयो (वर्ष 1869-72)

अफगानिस्तान के सम्बन्ध में उसने सर जॉन लॉरेन्स की नीति का समर्थन किया। लॉर्ड मेयो ने भारत में वित्त के विकेन्द्रीकरण को आरम्भ किया। उसने बजट घाटे को कम किया, आयकर की दर को 1% से बढ़ाकर 2.5% कर दिया। 1870 ई. में मेयों द्वारा लाल सागर से होकर तार व्यवस्था का प्रारम्भ किया। अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 ई. में मेयो द्वारा किया गया। 1872 ई. में उसने एक कृषि विभाग की स्थापना की।

ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के द्वितीय पुत्र ड्यूक ऑफ एडिनबरा ने लॉर्ड मेयो के काल में ही 1869 ई. में भारत यात्रा की थी। लॉर्ड मेयो ने भारतीय नरेशों के बालकों की शिक्षा के लिए अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की। मेयो द्वारा कृषि एवं वाणिज्य विभाग की स्थापना के साथ ही राज्य रेलवे व्यवस्था की भी शुरुआत की गई। अण्डमान द्वीप में 1872 ई. में एक पठान ने लॉर्ड मेयो की हत्या कर दी।

लॉर्ड नॉर्थब्रुक (वर्ष 1872-76)

लॉर्ड नॉर्थब्रुक 1872 ई. में भारत का वायसराय बना। 1873 ई. में उसने अफगानिस्तान के राजदूत से बातचीत की, किन्तु खुद की ओर से कुछ भी आश्वासन देने से इनकार कर दिया। 1876 ई. में उसने त्याग-पत्र दे दिया, क्योंकि अफगानिस्तान की नीति के सम्बन्ध में उसके विचार डिजरैली की सरकार से नहीं मिलते थे। इसके समय में पंजाब का प्रसिद्ध कूका आन्दोलन हुआ।

1875 ई. में अलीगढ़ में सैयद अहमद खाँ द्वारा मोहम्मडन एंग्लो ओरियण्टल कॉलेज की स्थापना की गई, जिसे नॉर्थब्रुक द्वारा ₹ 10,000 दान दिया गया। लॉर्ड नॉर्थब्रुक के समय प्रिन्स ऑफ वेल्स (किंग एडवर्ड सप्तम) भारत आए। इसके समय में ही बड़ौदा के राजा मल्हार राव गायकवाड़ को भ्रष्टाचार एवं कुशासन का आरोप लगाकर सिंहासन से हटाकर उसके भाई के दत्तक पुत्र को 1875 ई. में राजा बना दिया गया।

लॉर्ड लिटन (वर्ष 1876-80)

– लॉर्ड लिटन एक महान् लेखक तथा प्रतिभावान वक्ता था। साहित्य जगत में वह ओवन मैरिडिथ के नाम से प्रसिद्ध था। लॉर्ड लिटन भारतीय अदालतों की इस मनोवृत्ति का विरोधी था, जिसके अनुसार उन मामलों में, जिनमें यूरोपीय अपराधी होते थे, नरम दण्ड दिए जाते थे। उसके समय में द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध (1878-80 ई.) लड़ा गया था। वह अफगानिस्तान के प्रति एक जोशभरी ‘अग्र (फॉरवर्ड)’ नीति का अनुसरण करने वाला गवर्नर-जनरल था। इसके काल की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

भीषण अकाल 1876-78 ई. में मद्रास, बम्बई, मैसूर, हैदराबाद, पंजाब, मध्य भारत के कुछ भागों में भारी अकाल पड़ा। अकाल कारण लगभग 50 लाख लोग काल के ग्रास बन गए। लिटन ने अकाल के कारण की जाँच के लिए रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में अकाल आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने प्रत्येक प्रान्त में अकाल कोष बनाने की सलाह दी।

दिल्ली दरबार का आयोजन अकाल की भयानक स्थिति के बाद दिल्ली में 1 जनवरी, 1877 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित करने के लिए दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया।

राज उपाधि अधिनियम लॉर्ड लिटन के काल में अंग्रेज़ी संसद ने, महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि देने के लिए राज उपाधि अधिनियम, 1876 पारित किया था।

मुक्त व्यापार नीति को प्रोत्साहन लॉर्ड लिटन ने मुक्त व्यापार नीति का अनुसरण किया। उसने 29 वस्तुओं पर से आयात-कर हटा दिया। उसने सूती कपड़े पर 50% का कर हटाया, इसका परिणाम यह हुआ कि समुद्री व्यापार में आशातीत वृद्धि हुई।

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878 इस अधिनियम द्वारा भारतीय भाषा में समाचार-पत्रों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। इस अधिनियम को गलाघोंट अधिनियम भी कहा गया।

भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1878 में लॉर्ड लिटन के समय में इस अधिनियम के द्वारा किसी भारतीय के लिए बिना लाइसेन्स शस्त्र रखना अथवा उसका व्यापार करना एक दण्डनीय अपराध माना गया।

वैधानिक नागरिक सेवा 1879 ई. में वैधानिक नागरिक सेवा की स्थापना की गई। इसके द्वारा यह व्यवस्था की गई कि अब तक जिन पदों पर नियमित नागरिक सेवाओं के सदस्य काम करते थे, उन पर वायसराय तथा भारतीय मन्त्री द्वारा स्वीकृत व्यक्ति ही नियुक्त किए जाएंगे। लिटन ने अलीगढ़ में एक मुस्लिम-एंग्लो प्राच्य महाविद्यालय की स्थापना की।

लॉर्ड रिपन (1880-84 ई.)

लॉर्ड रिपन ग्लैडस्टन युग का एक सच्चा व उदार व्यक्ति था। यह भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय गवर्नर-जनरल था। 1852 ई. में उसने एक पुस्तिका इस युग का कर्तव्य लिखी थी। उसने एक बार कहा था-मेरा मूल्यांकन मेरे कार्यों से करना, शब्दों से नहीं। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने रिपन को भारत के उद्धारक की संज्ञा दी थी और उसके शासनकाल को भारत में स्वर्ण युग का आरम्भ कहा था।

नियमित जनगणना की शुरुआत 1872 ई. में प्रथम जनगणना मेयो के शासनकाल में शुरू हुई, किन्तु प्रथम नियमित जनगणना रिपन के काल में 1881 ई. में हुई।

प्रथम फैक्ट्री अधिनियम प्रथम फैक्ट्री अधिनियम लॉर्ड रिपन के समय में 1881 ई. में पारित हुआ।

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट की समाप्ति लॉर्ड रिपन ने समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए 1882 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त में कर दिया।

हण्टर कमीशन का गठन रिपन ने शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत 1882 ई. में विलियम हण्टर के नेतृत्व में हण्टर कमीशन का गठन किया। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में प्राइमरी और माध्यमिक स्कूली शिक्षा की उपेक्षा की गई है, परन्तु विश्वविद्यालय की शिक्षा पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दिया गया है।

स्थानीय स्वशासन की शुरुआत रिपन के सुधार कार्यों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य स्थानीय स्वशासन की शुरुआत थी। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय बोर्ड बनाए गए, जिले में जिला उपविभाग, तहसील बोर्ड बनाने की योजना बनी। नगरों में नगरपालिका का गठन किया गया एवं इन्हें कार्य करने की स्वतन्त्रता एवं आय प्राप्त करने के साधन उपलब्ध कराए गए।

इल्बर्ट बिल विवाद 1884 ई. में इल्बर्ट बिल विवाद रिपन के समय में हुआ। इल्बर्ट भारत सरकार का विधि सदस्य था। इल्बर्ट बिल विधेयक में फ़ौजदारी दण्ड व्यवस्था में प्रचलित भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया गया था। भारतीय न्यायाधीशों को इल्बर्ट विधेयक में यूरोपीय मुकदमों को सुनने का अधिकार दिया गया। भारत में रहने वाले अंग्रेज़ों ने इस बिल पर आपत्ति जताई, जिसके कारण रिपन को इस विधेयक को वापस लेकर संशोधन करके पुनः प्रस्तुत करना पड़ा। इस विधेयक पर हुए वाद-विवाद के कारण ही रिपन ने कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व दे दिया।

स्वतन्त्र व्यापारिक नीति लॉर्ड रिपन ने स्वतन्त्र व्यापारिक नीति को पूर्ण किया। इस नीति को लॉर्ड नार्थ ब्रुक तथा लिटन ने प्रारम्भ किया था। 1882 ई. में सम्पूर्ण भारत में नमक पर कर कम कर दिया गया।

लॉर्ड डफरिन (वर्ष 1884-88)

डफरिन के काल की महत्त्वपूर्ण घटना तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध (1885-88 ई.) था। इस युद्ध में बर्मा पराजित हुआ। उसके सर्वप्रमुख कार्यों में किसानों के हितों की रक्षा की ओर विशेष ध्यान देना था। 1885 ई. में बंगाल में टैनेन्सी एक्ट (बंगाल कृषक अधिनियम) पारित हुआ, जिसके अन्तर्गत अब जमींदार अपनी इच्छानुसार किसानों की भूमि नहीं छीन सकते थे। उसी के काल में 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। डफरिन के काल में लेडी डफरिन फण्ड व 1887 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

लॉर्ड लैंसडाउन (वर्ष 1888-94)

लॉर्ड लैंसडाउन 1888 ई. में डफरिन के बाद भारत का वायसराय बनकर आया। लॉर्ड लैंसडाउन के काल में कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह ने राजगद्दी त्याग दी तथा प्रिन्स ऑफ वेल्स का दूसरी बार भारत आगमन हुआ। इसके काल में 1891 ई. में दूसरा फैक्ट्री अधिनियम पारित हुआ। 1892 ई. में इण्डियन काउन्सिल एक्ट पारित किया गया, जिसके द्वारा भारत में निर्वाचन पद्धति आरम्भ हुई। उसके समय में सर डूरण्ड की अध्यक्षता में एक शिष्टमण्डल अफगानिस्तान भेजा गया। उसके प्रयास से भारत और अफगानिस्तान के मध्य सीमा का निर्धारण हुआ, जिसे डूरण्ड रेखा के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में हुए विद्रोह (1891 ई.) को दबाने का श्रेय भी लॉर्ड लैंसडाउन जाता है। उसके काल में भारतीय रियासतों की सेनाओं को संगठित करके उन्हें साम्राज्य सेवा सेना नाम दिया गया था।

लॉर्ड एल्गिन द्वितीय(1894-99)

1896 ई. से 1898 ई. के मध्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तथा पंजाब के हिसार जिले में भयंकर अकाल पड़ा। 1898 ई. में अकालों के सम्बन्ध में जाँच के लिए सर जेम्स लायल की अध्यक्षता में एक आयोग ‘लायल कमीशन’ नियुक्त किया गया। उसके समय में 1893 ई. में एक अफीम आयोग नियुक्त किया गया था, जिसका काम अफीम के प्रयोग से जनता के स्वास्थ्य पर प्रभाव के सम्बन्ध में जाँच करना था। एल्गिन ने भारत के विषय में कहा था कि ‘भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जाएगी।

लॉर्ड कजन (1899-1905 ई)

भारत का वायसराय बनने से पहले कर्जन ने भारत के उपमन्त्री के रूप में कार्य किया था। उसने छ: वर्ष भारत में व्यतीत किए। भारत में वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन का कार्यकाल काफी उथल-पुथल भरा रहा है। कर्जन के काल में हुए महत्त्वपूर्ण प्रयास निम्नलिखित हैं

विदेश नीति

कर्जन ने नए उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त का गठन किया। उसने तिब्बत के गुरु दलाईलामा पर रूस की ओर झुकाव का आरोप लगाकर तिब्बत में हस्तक्षेप किया। वर्ष 1903 में कर्नल यंग हसबैण्ड के नेतृत्व में गई सेना ने तिब्बतियों से सन्धि की, जिसके परिणामस्वरूप तिब्बत ने रुपये 1 लाख वार्षिक दर से 75 लाख रुपये युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में देना रेल्स्वीकार तो कर लिया, परन्तु इसकी जमानत के रूप में ब्रिटिश सरकार ने भूटान एवं सिक्किम के बीच स्थित चुम्बी घाटी पर 75 वर्षों के लिए अपना अधिकार कर लिया।

शिक्षा सुधार

लॉर्ड कर्जन ने सर थॉमस रैले के अधीन वर्ष 1902 में विश्वविद्यालयों में आवश्यक सुधारों हेतु सुझाव देने के लिए एक आयोग का गठन किया। आयोग की सिफारिश के आधार पर वर्ष 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पास किया गया।

नौकरशाही में सुधार

लॉर्ड कर्जन ने सभी विभागों को प्रेरित किया कि वे निजी परामर्श के द्वारा अपने कार्य को निपटा लिया करें, लम्बे मतभेदों से बचकर नोट आदि लिखने की परिपाटी तथा निर्णयों तक पहुँचने में होने वाली देरी से बचें।

पुलिस सुधार

कर्जन ने वर्ष 1902 में सर एण्ड्रयू फ्रेजर की अध्यक्षता में एक पुलिस आयोग गठित किया, ताकि प्रत्येक प्रान्त के पुलिस प्रशासन की जाँच-पड़ताल की जा सके। वर्ष 1903 में पुलिस विभाग में CID (Criminal Investigation Department) की स्थापना की गई।

अकाल आयोग का गठन

अकाल के समय लॉर्ड कर्जन ने स्वयं संकटग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण किया तथा प्रत्येक क्षेत्र में सहायता के लिए कहा। मैक्डोनॉल्ड की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति हुई, जिसका कार्य अकाल-सहायता की व्यवस्था को योग्यतापूर्वक चलाने के सम्बन्ध में सिफारिशें करना था।

कृषि सुधार

कर्जन ने कृषि बैंक तथा सहकारी समितियों स्थापना की, ताकि कृषकों को साहूकारों के अत्याचारों से बचाया जा सके। उसने पूसा में कृषि अनुसन्धान संस्थान स्थापित किया, जिससे कृषि की मौलिक समस्याओं को हल करने में सहायता मिले।

वर्ष 1901 में भारत में सिंचाई की समस्या का अध्ययन करने के लिए एक सिंचाई आयोग की नियुक्ति हुई। सर कॉलिन स्कॉट मानक्रीफ को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वर्ष 1904 में ‘सहकारी उधार समिति अधिनियम’ पेश हुआ, जिसमें कम ब्याज दर पर उधार की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त एक साम्राज्यीय कृषि विभाग स्थापित किया गया, जिसमें कृषि, पशुधन एवं कृषि के विकास के लिए वैज्ञानिक प्रणाली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया गया।

रेलवे सुधार

कर्जन ने भारत में रेलों की पद्धति के सम्बन्ध में रिपोर्ट करने के लिए सर थॉमस रॉबर्टसन को नियुक्त किया। उसने सम्पूर्ण पद्धति के पूर्ण परिवर्तन की सिफारिश की। उसने वाणिज्य उपक्रम के आधार पर रेल लाइनों के विकास पर बल दिया। भारत में रेलवे लाइनों का सर्वाधिक विस्तार इसी के शासन काल में हुआ था।

निगम सुधार

कर्जन ने कलकत्ता निगम अधिनियम, 1899 के द्वारा चुने जाने वाले सदस्यों की संख्या में कमी कर दी, परन्तु निगम एवं उसकी समितियों में अंग्रेज लोगों की संख्या बढ़ा दी गई। परिणाम यह हुआ कि कलकत्ता नगर निगम मात्र एक एंग्लो-इण्डियन सभा के रूप में ही रह गया।

किचनर विवाद

वर्ष 1900 में किचनर भारत का सेनाध्यक्ष बनका आया। यह अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था। देशी नरेशों के राजकुमारों के सैनिकों के लिए उसने (Imperial Cadet Core, ICC) की स्थापना की। किचनर से विवाद के कारण वर्ष 1905 में कर्जन ने त्याग-पत्र दे दिया।

बंगाल विभाजन

राष्ट्रीय आन्दोलन को दबाने व कमजोर करने के उद्देश्य से लॉर्ड कर्जन ने वर्ष 1905 में बंगाल को दो भागों में बाँट दिया। लॉर्ड कर्जन का यह विभाजन ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर आधारित था। उसने इस कार्य के द्वारा हिन्दू और मुसलमानों में मतभेद पैदा करने का प्रयत्न किया, परन्तु इस विभाजन के विरोध में इतनी आवाजें उठीं कि वर्ष 1911 में इस विभाजन को समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ी, जो वर्ष 1912 में कार्य रूप में परिणत हुआ।

लॉर्ड मिण्टो द्वितीय (वर्ष 1905-10)

लॉर्ड मिण्टो द्वितीय के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना वर्ष 1907 का आंग्ल-रूसी प्रतिनिधि सम्मेलन है। इसके द्वारा इंग्लैण्ड तथा रूस के मध्य सभी शेष मतभेद सुलझा लिए गए तथा दोनों देश एक-दूसरे के समीप आ गए। इसके काल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  •  मुस्लिम लीग का गठन (वर्ष 1906)।
  • वर्ष 1906 में कलकत्ता अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा अपना लक्ष्य स्वराज घोषित।
  • क्रान्तिकारी खुदीराम बोस को फाँसी, तिलक को 6 वर्ष की कारावास।
  • समाचार-पत्र अधिनियम (प्रेस एक्ट), 1908 पुनः पारित।
  • चीन के साथ अफीम का व्यापार बन्द।
  • मार्ले-मिण्टो सुधार या इण्डियन काउन्सिल एक्ट, 1909 पारित।

लॉर्ड हॉर्डिंग द्वितीय (वर्ष 1910-16)

हॉर्डिंग के काल में ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने वर्ष 1911 में भारत की यात्रा की तथा जिसके स्वागत में दिल्ली में एक भव्य दरबार का आयोजन 12 दिसम्बर, 1911 को हुआ। दिल्ली दरबार के दौरान बंगाल विभाजन को रद्द कर दिया गया तथा भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने की घोषणा की गई। असम का शासन पृथक् रूप से एक मुख्य आयुक्त के अधीन कर दिया गया। 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में अधिकृत रूप से प्रवेश करते समय लॉर्ड हॉर्डिंग पर बम फेंका गया, जिसमें वह घायल हो गया। वर्ष 1916 में लॉर्ड हॉर्डिंग द्वितीय ने ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ को अपनी स्वीकृति प्रदान की।

उसके काल की अन्य घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  •  वर्ष 1913 में ब्रिटिश शासन द्वारा शैक्षिक सुधार सम्बन्धी प्रस्ताव।
  • 4 अगस्त, 1914 को प्रथम विश्वयुद्ध का प्रारम्भ।
  • वर्ष 1915 में गाँधीजी का दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आना।

लॉर्ड चेम्सफोर्ड (वर्ष 1816-21)

प्रथम विश्वयुद्ध के समय लॉर्ड चेम्सफोर्ड भारत में गवर्नर-जनरल के रूप में आने से पूर्व ऑस्ट्रेलिया के एक राज्य में काम कर चुका था। इसके काल की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • होमरूल लीग का गठन, वर्ष 1916 में पूना में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना
  • वर्ष 1917 में शिक्षा पर सैडलर आयोग की नियुक्ति।
  • वर्ष 1919 का रॉलेट एक्ट पारित।
  • जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (13 अप्रैल, 1919)
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 लाया गया।
  • खिलाफत आन्दोलन, गाँधीजी के सत्याग्रह की शुरुआत, तृतीय अफगान युद्ध।
  • एस पी सिन्हा बिहार के लेफ्टिनेण्ट गवर्नर बने। इस पद पर पहुंचने वाले वे प्रथम भारतीय थे।
  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना।
  • गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन की शुरुआत (1 अगस्त, 1920)

लॉर्ड रीडिंग (वर्ष 1821-26)

भारत में आने वाला यह एकमात्र यहूदी वायसराय था। यह इंग्लैण्ड में उच्च न्यायाधीश जैसे सर्वोच्च पद पर भी पहुंचा था। एकवर्थ कमीशन की अनुशंसा पर रेल बजट को आम बजट से अलग किया गया। सैन्य सुधारों के लिए इण्डियन मण्डहस्ट समिति का गठन किया गया। वर्ष 1924 में लोक सेवा के लिए ली आयोगाया गया, जिसकी अनुशंसा पर भारत में लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।

मुडीमैन समिति की रिपोर्ट को लॉर्ड रीडिंग के काल में सार्वजनिक किया गया। उसके काल की अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • नवम्बर, 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल्स की भारत यात्रा।
  • सी आर दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा दिसम्बर, 1922 में स्वराज पार्टी का गठन। चौरी-चौरा की घटना 5 फरवरी, 1922 तथा असहयोग आन्दोलन की वापसी।
  • प्रशासनिक सेवाओं में उम्मीदवारों के चयन के लिए दिल्ली और लन्दन में वर्ष 1928 से एक साथ परीक्षा की व्यवस्था की गई।
  • वर्ष 1924 में कानपुर में अखिल भारतीय साम्यवादी दल का गठन किया गया था।
  • 9 अगस्त, 1925 को काकोरी काण्ड।

लॉर्ड इरविन (वर्ष 1826-31)

इसके कार्यकाल में वर्ष 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। वर्ष 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति की रिपोर्ट को नेहरू रिपोर्ट नाम दिया गया। नेहरू रिपोर्ट के विरोध में वर्ष 1929 में जिन्ना ने अपनी 14 सूत्रीय माँग प्रस्तुत की। इरविन के काल की अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • वर्ष 1928 में रॉयल कमीशन (कृषि सम्बन्धित) की नियुक्ति।
  • वर्ष 1929 में ‘इम्पीरियल काउन्सिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ की स्थापना।
  • 31 दिसम्बर, 1929 को कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य’ की घोषणा की।
  • 26 जनवरी, 1930 को सम्पूर्ण देश में स्वतन्त्रता दिवस का आयोजन।
  • 12 मार्च, 1930 को गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया गया।
  • वर्ष 1930 में लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन।
  • 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता।

लॉर्ड विलिंगडन (वर्ष 1931-36)

भारत में गवर्नर-जनरल के रूप में नियुक्त होने से पहले विलिंगडन बम्बई तथा मद्रास के गवर्नर के रूप में भी कार्य कर चुका था। इसके कार्यकाल में ही द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन लन्दन में हुआ। इस सम्मेलन गाँधीजी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया, परन्तु साम्प्रदायिक समस्या के बारे में कोई समझौता न हो सका।

अगस्त, 1932 में रैम्जे मैकडोनॉल्ड ने प्रसिद्ध साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा कर दी। यरवदा जेल में बन्द महात्मा गाँधी ने उसका दृढ़ विरोध किया। फलस्वरूप पूना समझौते पर हस्ताक्षर हुए तथा इस समझौते ने दलित जातियों के प्रश्न पर साम्प्रदायिक निर्णय में परिवर्तन कर दिया।

विलिंगडन के काल की अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • तृतीय गोलमेज सम्मेलन का वर्ष 1932 में आयोजन।
  • वर्ष 1932 में इण्डियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून की स्थापना।
  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली द्वारा पाकिस्तान शब्द का प्रयोग।
  • वर्ष 1934 में आचार्य नरेन्द्र देव और जयप्रकाश नारायण द्वारा सोशलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना।
  • वर्ष 1935 में भारत सरकार का अधिनियम स्वीकृत।
  • वर्ष 1935 में बर्मा का भारत से अलग होना।
  • वर्ष 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन।
  • वर्ष 1936 में बिहार तथा क्वेटा में भयंकर भूकम्प आया।

लॉर्ड लिनलिथगो (वर्ष 1936-44)

भारत सरकार के 1935 के अधिनियम का ढाँचा बनाने में उसका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उसे उस कानून को क्रियान्वित करने के लिए भारत भेजा गया था, जिसके निर्माण में उसने सहायता की थी। वर्ष 1935 के अधिनियम के अन्तर्गत पहला आम चुनाव वर्ष 1936-37 सम्पन्न हुआ। 1 सितम्बर, 1939 को द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रारम्भ हुआ। इस युद्ध में भारतीयों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय नेताओं के समक्ष अगस्त प्रस्ताव (8 अगस्त, 1940) रखा, जिसमें भारतीयों को प्रलोभित करने वाले अनेक प्रस्ताव थे।

लिनलिथगो के काल की अन्य प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • पहली बार वर्ष 1940 में पाकिस्तान की माँग तथा गाँधीजी द्वारा सत्याग्रह प्रारम्भ करना।
  • फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना।
  • व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ
  • वर्ष 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया।, भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत।

लॉर्ड वेवेल (वर्ष 1944-47)

द्वितीय विश्वयुद्ध लॉर्ड वेवेल के काल में समाप्त हुआ। शिमला सम्मेलन 25 जून, 1945 को वेवेल द्वारा बुलाया गया, परन्तु जिन्ना की हठधर्मिता के कारण असफल रहा। जब इंग्लैण्ड में मजदूर दल सत्ता में आया, तो भारत में प्रान्तीय विधानसभाओं के नए चुनाव कराने की आज्ञा दी गई। मार्च, 1946 में कैबिनेट मिशन, जिसमें लॉर्ड पैथिक लॉरेन्स, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स तथा ए वी एलेक्जेण्डर थे, भारत आया। इस योजना के अनुसार अन्तरिम सरकार की व्यवस्था की गई थी तथा भारत का संविधान बनाने के लिए कार्य-पद्धति का विचार पेश किया गया था।

लॉर्ड वेवेल के काल की अन्य प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

  • नवम्बर, 1945 में आजाद हिन्द फौज के सैनिकों पर लाल किले में मुकदमा चला।
  • 18 फरवरी, 1946 को नौसैनिकों द्वारा विद्रोह।
  • 16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा सीधी कार्यवाही दिवस का आयोजन।
  • 2 सितम्बर, 1946 को पण्डित नेहरू ने अन्तरिम सरकार बनाई।
  • 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक।
  • तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट एटली ने भारत को जून, 1948 के पहले स्वतन्त्र करने की घोषणा की।

लॉर्ड माउण्टबेटन (वर्ष 1947-48)

लॉर्ड माउण्टबेटन ने मार्च, 1947 में लॉर्ड वेवेल के स्थान पर कार्यभार संभाला। 3 जून, 1947 को माउण्टबेटन प्लान की घोषणा की गई, जिसमें भारत विभाजन की योजना थी। 4 जुलाई, 1947 को एटली द्वारा भारतीय स्वतन्त्रता विधेयक ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया तथा 18 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कर दिया गया। विधेयक के अनुसार भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र राष्ट्रों के निर्माण की घोषणा की गई। 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारत स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता के बाद लॉर्ड माउण्टबेटन को स्वतन्त्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया।

सी राजगोपालाचारी (वर्ष 1948-50)

जून, 1948 से जनवरी, 1950 तक सी. राजगोपालाचारी स्वतन्त्र भारत के गवर्नर-जनरल रहे। उनके काल में 26 नवम्बर, 1949 स्वतन्त्र संविधान सभा द्वारा भारत का संविधान अंगीकृत किया गया तथा 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया, वह भारत के अन्तिम गवर्नर-जनरल थे।

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