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क्रिया किसे कहते हैं इसके कितने भेद होते हैं

क्रिया किसे कहते हैं इसके कितने भेद होते हैं क्रिया का अर्थ होता है- किसी काम को करना वाक्य में कुछ ऐसे शब्द होते है, जो किसी कार्य के करने या होने का बोध कराते है; जैसे

छात्र कक्षा में बैठे है।                        लड़की चित्र बनाती है।                         वर्षा हो रही है।   

उपर्युक्त वाक्यों में आपने देखा की सभी कुछ-न-कुछ क्रिया कर रहे है। वाक्यों के अंत में बैठे है, बनाती है, हो रही है आदि शब्द किसी काम के होने या करने के बारे में बता रहे है। ऐसे पदों या शब्दों को क्रिया कहते है। उदाहरण के तौर पर चलना, दौड़ना, पढ़ना, खेलना, उठना, जागना, खाना, हँसना, रोना आदि क्रिया शब्द है।

क्रिया की परिभाषा

जो पद या शब्द किसी काम के होने या करने का बोध कराते है; वे क्रिया कहलाते है।

धातु किसे कहते है

धातु-  क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है; जैसे लिखा, लिखता हूँ, लिखूँगा, लिखो, लिखना चाहिए आदि क्रिया पदों में ‘लिख’ अंश समान रूप से विदयामान है; अत: ‘लिख’ धातु है। इसी प्रकार पढ़, दौड़, ले, आ आदि भी धातुएँ है।

धातुओं में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर क्रिया का सामान्य रूप बनाता है; जैसे चलना, पढ़ना, दौड़ना, आना आदि।

क्रिया के बिना वाक्य पूरा नहीं होता। विभिन्न भाषाओं की क्रियाओं में क्रिया का स्थान अलग-अलग होता है।

धातु के भेद

  1. मूल धातु
  2. यौगिक धातु
  3. सामान्य धातु
  4. व्युत्पन्न धातु

मूल धातु- स्वतंत्र होती है तथा किसी अन्य शब्द पर आश्रित नहीं होती। जैसे-खा, पढ़, लिख, जा, आदि।

यौगिक धातु- किसी प्रत्यय के संयोग से बनती है । जैसे-पढ़ना से पढ़ा, लिखना से लिखा, खाना से खिलायी जाती, आदि।

सामान्य धातु- धातु में जो ‘ना’ प्रत्यय जोडकर उसका सरल रूप बनाया जाता है उसे सामान्य धातु कहते हैं। जैसे– सोना , रोना , पढना , बैठना आदि।

व्युत्पन्न धातु- सामान्य धातु में प्रत्यय लगाकर या और किसी कारण से जो परिवर्तन किये जाते हैं उसे व्युत्पन्न धातु कहते हैं। जैसे- पढवाना, कटवाना, दिलवाना, करवाना, सुलवाना, लिखवाना आदि।

क्रिया के भेद

कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद होते है-

  • अकर्मक क्रिया
  • सकर्मक क्रिया

अकर्मक क्रिया किसे कहते है

अकर्मक क्रिया- जिन क्रियाओं के कार्य का प्रभाव सीधे कर्ता पर पड़ता है, उन्हें अकर्मक क्रियाएँ कहते है।

राधा हँसती है।                   हिरन दौड़ रहा है।                 बतख तैर रही है।     

उपर्युक्त वाक्यों में हँसती है, दौड़ रहा है, तैर रही है आदि क्रियाओं का सीधा प्रभाव राधा, हिर तथा बतख पर पड़ रहा है, अत: ये अकर्मक क्रियाएँ है।

अकर्मक का अर्थ है- बिना कर्म के। अकर्मक क्रिया की पहचान के लिए क्या, किसको, किसे से प्रश्न करने पर यदि उत्तर न प्राप्त हो तो, समझना चाहिए की अकर्मक क्रिया है।

कुछ अन्य अकर्मक क्रियाएँ- रोना, सोना, उड़ना, नाचना, रखना और अकड़ना आदि।

सकर्मक क्रिया किसे कहते है

जिस क्रिया के कार्य का फल कर्ता को छोड़कर कर्म पर पड़ता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती है।

गाय घास चर रही है।         छात्र पुस्तक पढ़ रहे है।                   माँ फल काट रही है।               सब्जीवाला सब्जी बेच रहा है।  

उपर्युक्त वाक्यों में चर रही है, पढ़ रहे है, काट रही है, बेच रहा है आदि क्रियाओं का फल क्रमश: घास, सब्जी, पुस्तक तथा फल पर पड़ रहा है, जो सभी कर्म है।

सकर्मक क्रिया की पहचान के लिए छात्रों को वाक्य में क्या, किसको आदि प्रश्नो के उत्तर मिलने आवशयक होते है।

सकर्मक क्रिया के भेद 

सकर्मक क्रिया के दो भेद होते है

  1. एककर्मक क्रिया
  2. द्विकर्मक क्रिया

एककर्मक क्रिया-  जिन क्रियाओं का एक कर्म होता है, वे एककर्मक क्रिया कहलाती है; जैसे –

हाथी गन्ना खाता है।                                गीता पत्र लिख रही है।  

ऊपर दिए गए वाक्यों में ‘गन्ना’ और ‘पत्र’ कर्म है। अत: ‘खाता है’ और ‘लिख रही है’ , एककर्मक क्रियाएँ है।

द्विकर्मक क्रिया- जिन क्रियाओं के दो कर्म होते है, वे द्विकर्मक क्रिया कहलाती है; जैसे

पिता ने पुत्र को पुस्तक लाकर दी।                 (पुत्र और पुस्तक- कर्म)

माँ ने मोहन को भोजन परोसा।               (मोहन और भोजन- कर्म)

यहाँ पहले वाक्य में ‘पुत्र’ और ‘पुस्तक’ तथा दूसरे वाक्य में ‘मोहन’ और ‘भोजन’ दो-दो कर्म है। इन वाक्यों में क्या और किसको प्रश्न लगाने पर दोनों उत्तर मिलते है; जैसे-

वाक्य प्रश्न उत्तर 
पिता ने पुत्र को पुस्तक लाकर दी

माँ ने मोहन को भोजन परोसा

क्या दी?

किसे दी?

क्या दिया?

किसे दिया?

पुस्तक

पुत्र को

भोजन

मोहन को

सकर्मक और अकर्मक क्रिया की पहचान

किसी क्रिया के पूर्व क्या लगाकर प्रश्न करने से यदि उसका उत्तर मिल जाता है तो क्रिया सकर्मक क्रिया होती है। यदि उत्तर नहीं मिलता है तो क्रिया अकर्मक क्रिया होती है। जैसे –

 वह क्या पढ़ता है?

वह पुस्तक पढ़ता है।

वह कहा जाता है?

वह जाता है।

पुस्तक

(सकर्मक क्रिया)

उत्तर नहीं

(अकर्मक क्रिया)

रचना के आधार पर क्रिया के भेद

  1. सामान्य क्रिया
  2. मिश्र क्रिया
  3. नामधातु क्रिया
  4. संयुक्त क्रिया
  5. प्रेरणार्थक क्रिया
  6. पूर्वकालिक क्रिया
  7. ध्वन्यात्मक क्रिया।

सामान्य क्रिया- कुछ क्रियाएँ भाषा व् व्यवहार में परम्परागत रूप से चली आ रही है। इन क्रियाओं में धातु के साथ ‘ना’ प्रत्यय लगता है। ऐसी क्रियाओं को सामान्य क्रिया कहते हैं। जैसे- डरना, जलना

मिश्र क्रिया- जिस क्रिया का पहला भाग संज्ञा या सर्वनाम के रूप में हो और दूसरा या शेष भाग धातु से बनी क्रिया हो और दोनों मिलकर एक क्रिया की रचना करते हों, उसे मिश्र क्रिया कहते हैं। जैसे-

मेरा मुँह खुल गया तो जाने क्या होगा।

दांत दिखाना बंद करो।

ऊपर ‘दांत’ और ‘मुंह’ संज्ञाएँ ‘दिखाना’ और ‘खुलना’ के साथ मिश्रित हो गयी हैं।

नामधातु क्रिया- ऐसी धातु जो क्रिया को छोड़कर किन्ही अन्य शब्दों जैसे संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनती है वह नामधातु क्रिया कहलाती हैं। जैसे- अपनाना  (अपने से), बतियाना (बात से)

सयुंक्त क्रिया- ऐसी क्रिया जो किन्ही दो क्रियाओं के मिलने से बनती है वह सयुंक्त क्रिया कहलाती है। वह चला गया। (चलना और जाना), तुम सो गए। (सोए भी, गए भी)

प्रेरणार्थक क्रिया- जिस क्रिया से यह ज्ञात हो कि कर्ता स्वयं काम ना करके किसी और से काम करा रहा है। जैसे: पढवाना, लिखवाना आदि।

पूर्वकालिक क्रिया- जिस क्रिया का काल मुख्य क्रिया से पहले संपन्न हो चुका हो, तो वह ‘चुकी हुई’ क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है। जैसे-आप नहाकर आए हैं।

ध्वन्यात्मक क्रिया- कुछ क्रियाएं ध्वनि पर आधारित होती हैं, अर्थात ध्वनि के आधार पर बनाई जाती हैं। ये अनुकरणात्मक या ध्वन्यात्मक क्रियाएं कहलाती हैं। जैसे – मक्खियाँ भिनभिनाती हैं।

प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद

  • सहायक क्रिया
  • पूर्वकालिक क्रिया
  • सजातीय क्रिया
  • द्विकर्मक क्रिया
  • विधि क्रिया
  • अपूर्ण क्रिया
  • अपूर्ण अकर्मक क्रिया
  • अपूर्ण सकर्मक क्रिया

सहायक क्रियामुख्य क्रिया की सहायता करने वाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं। जैसे- उसने बाघ को मार डाला ।

सहायक क्रिया मुख्य क्रियां के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती है । कभी एक और कभी एक से अधिक क्रियाएँ सहायक बनकर आती हैं । इनमें हेर-फेर से क्रिया का काल परिवर्तित हो जाता है ।

पूर्वकालिक क्रिया  पूर्वकालिक का अर्थ होता है – पहले से हुआ। जब कर्ता एक कार्य को समाप्त करके तुरंत दूसरे काम में लग जाता है तब जो क्रिया पहले ही समाप्त हो जाती है उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। जैसे- वह गाकर सो गया।

सजातीय क्रियाकुछ अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं के साथ उनके धातु की बनी हुई भाववाचक संज्ञा के प्रयोग को सजातीय क्रिया कहते हैं; जैसे- अच्छा खेल खेल रहे हो। वह मन से पढ़ाई पढ़ता है।

द्विकर्मक क्रिया कभी-कभी किसी क्रिया के दो कर्म (कारक) रहते हैं । ऐसी क्रिया को द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-तुमने राम को कलम दी। इस वाक्य में राम और कलम दोनों कर्म (कारक) हैं।

विधि क्रियाजिस क्रिया से किसी प्रकार की आज्ञा का ज्ञान हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं; जैसे- घर जाओ

अपूर्ण क्रियाजिस क्रिया से इच्छित अर्थ नहीं निकलता, उसे अपूर्ण क्रिया कहते हैं।

इसके दो भेद हैं

  • अपूर्ण अकर्मक क्रिया
  • अपूर्ण सकर्मक क्रिया

अपूर्ण अकर्मक क्रिया अकर्मक क्रियाएँ कभी-कभी अकेले कर्ता से स्पष्ट नहीं होतीं । इनके अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ कोई संज्ञा या विशेषण पूरक के रूप में लगाना पड़ता है। ऐसी क्रियाओं को अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – वह बीमार रहा । इस वाक्य में बीमार पूरक है।

अपूर्ण सकर्मक क्रिया कुछ संकर्मक क्रियाओं का अर्थ कर्ता और कर्म के रहने पर भी स्पष्ट नहीं होता। इनके अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ कोई संज्ञा या विशेषण पूरक के रूप में लगाना पडता है। ऐसी क्रियाओं को अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहा जाता है। जैसे- आपने उसे महान् बनाया । इस वाक्य में ‘महान् पूरक है।

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